कितनी अजीब बात है ना, कि जो मजदूर हमारे घर बनाते हैं, सड़के बनाते हैं, हमारे आसपास की हर खूबसूरत चीज का निर्माण करते हैं वे खुद अपने जीवन में कितनी कठिनाईयों से गुजरते हैं? महानगरों में उन्हें किसी तरह काम तो मिल जाता है पर इतना वेतन नहीं मिलता कि वे अपनी हर जरूरत पूरी कर पाएं, नतीजतन जब बात सेहत की आती है तो बस समझौता ही काम आता है. इसी समझौते को जी रहे हैं दिल्ली में काम करने वाले लाखों मजदूर. हाल ही में मजदूरों पर हुए एक सर्वे के अनुसार उद्योग विहार के लगभग डेढ़ लाख श्रमिक झोलाछाप डाक्टरों से इलाज कराने पर मजबूर हैं. वजह यह है कि इस क्षेत्र में आसपास कहीं कोई सरकारी अस्पताल या स्वास्थ्य केन्द्र नहीं है. इंडस्ट्रियल हब में एक ईएसआई डिस्पेंसरी है, जो शनिवार व रविवार को बंद रहती है. जबकि यही वह दिन है जब श्रमिकों डॉक्टर के पास जाकर अपना इलाज करवा सकते हैं. निजी अस्पताल के खर्चे श्रमिकों के बस के बाहर हैं. भले ही यह सर्वे एक क्षेत्र विशेष में हुआ है, लेकिन श्रमिकों की यह समस्या शायद देश के हर राज्य में एक जैसी ही है. अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं न मिलने पर भला कैसे एक श्रमिक श्रमदान कर सकता है? यदि आपने भी किसी श्रमिक को ऐसी परेशानी से गुजरते देखा है तो हमें बताएं. साथ ही यह भी बताएं कि श्रमिकों की इस समस्या का समाधान कैसे हो सकता है? क्या श्रमिकों के स्वास्थ्य की पूरी जिम्मेदारी उस संस्थान की नहीं होनी चाहिए जो मजदूर की मेहनत के पसीने से फल फूल रहा है? और क्या सरकार तो अपने देश के सबसे निचले तबके के स्वास्थ्य का ख्याल है?