ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की तर्ज पर केंद्र सरकार ने पहली बार स्कूली शिक्षा में प्रदर्शन को लेकर राज्यों की ग्रेडिंग जारी करने जा की है. जिसमें चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. इसमें केरल, गुजरात और चंडीगढ़ ने 800 से 850 के बीच अंक लाकर ग्रेड-1 में जगह बनाई है. यूपी, बिहार और झारखंड को 600 से 650 के बीच अंक लाने की वजह से पांचवीं ग्रेड में स्थान मिला है. इससे बुरे हालात उत्तर-पूर्व के तीन राज्यों के हैं. इस रिपोर्ट ने उन सारे प्रयासों पर पानी फेर दिया है जो स्कूली शिक्षा सुधार के लिए किए जा रहे हैं. हिन्दी भाषी राज्यों की बात की जाए तो केवल हरियाणा और राजस्थान को छोड़कर बाकी सभी राज्यों की हालत खराब है. सरकार शिक्षा के स्तर में सुधार के लिए अच्छे शिक्षकों को नियुक्त कर रही है, उनके वेतन में भी इजाफा किया गया है बावजूद इसके हालात बदत्तर बने हुए हैं. स्कूली शिक्षा का गिरता स्तर भी ड्राप आउट बच्चों की संख्या बढ़ाने की एक वजह बन गया है. आरटीई फोरम की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में 51.51, छत्तीसगढ़ में 29.98, असम में 11.43, हिमाचल में 9.01, उत्तर प्रदेश में 27.99, पश्चिम बंगाल में 40.50 फीसदी शिक्षक प्रशिक्षित नहीं हैं. इसका सीधा असर शिक्षा की गुणवत्ता पर पड़ रहा है. हमें बताएं कि वो कौन से कारण है जो स्कूलों में शिक्षा सुधार में बाधक बन रहे हैं? यदि आपके परिवार का कोई बच्चा सरकारी स्कूल में पढ़ रहा है तो उसे किस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है?