स्कूलों में जिस तेजी से बच्चों के एडमिशन हो रहे हैं, उससे दोगुनी तेजी से स्कूल छोड़ देने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है. इसका खुलासा एनुअल स्टेटस् ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट में हुआ है. 2007 से अब तक 6-14 साल के बच्चों के स्कूली नामांकन की दर 95 प्रतिशत से ज्यादा रही है. जबकि 2018 में छह से चौदह साल के आयुवर्ग में अनामांकित बच्चों की तादाद 3 प्रतिशत से घटकर 2.8 प्रतिशत पर आ गई है. बीते तीन सालों में प्राथमिक स्तर पर स्कूली पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चों की तादाद में लगभग डेढ़ गुणा की वृद्धि हुई है जबकि उच्च प्राथमिक स्तर पर बीच में पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चों की तादाद लगभग पौने दो गुणा बढ़ी है. यह रिपोर्ट नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशनल प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन ने जारी की है. रिपोर्ट के अनुसार साल 2014-15 में प्राथमिक स्तर पर स्कूली पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चों की दर 4.34 थी जो साल 2016-17 में बढ़कर 6.35 हो गई. इसी तरह अपर प्राइमरी स्तर पर स्कूली पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चों की दर 2014-15 में 3.77 थी जो 2016-17 में बढ़कर 5.67 हो गई है. माध्यमिक स्तर पर भी स्कूली पर स्कूली पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चों की दर बढ़ी है. तीन सालों में माध्यमिक स्तर पर यह दर 17.86 से बढ़कर 19.89 हो गई है. आठ साल तक की शुरुआती पढ़ाई पूरी ना कर पाने वाले बच्चों में लड़कों की तुलना में लड़कियों, खासकर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बच्चों की संख्या ज्यादा है. पढ़ाई छोड़ने वाले ज्यादातर बच्चे झारखंड से हैं. सर्वेक्षण में सामने आया है कि पढ़ाई में दिलचस्पी नहीं होने के कारण 23.80 प्रतिशत लड़के और 15.60 प्रतिशत लड़कियां पढ़ाई छोड़ देती हैं. जबकि घरेलू कामकाज के कारण 29.70 प्रतिशत लड़कियां और आमदनी जुटाने के लिए 31.00 प्रतिशत लड़कों ने स्कूलों को अलविदा कर दिया है.