2024 के आम चुनाव के लिए भी पक्ष-विपक्ष और सहयोगी विरोधी लगभग सभी प्रकार के दलों ने अपने घोषणा पत्र जारी कर दिये हैं। सत्ता पक्ष के घोषणा पत्र के अलावा लगभग सभी दलों ने युवाओं, कामगारों, और रोजगार की बात की है। कोई बेरोजगारी भत्ते की घोषणा कर रहा है तो कोई एक करोड़ नौकरियों का वादा कर रहा है, इसके उलट दस साल से सत्ता पर काबिज राजनीतिक दल रोजगार पर बात ही नहीं कर रहा है, जबकि पहले चुनाव में वह बेरोजगारी को मुद्दा बनाकर ही सत्ता तक पहुंचा था, सवाल उठता है कि जब सत्ताधारी दल गरीबी रोजगार, मंहगाई जैसे विषयों को अपने घोषणापत्र का हिस्सा नहीं बना रहा है तो फिर वह चुनाव किन मुद्दों पर लड़ रहा है।

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मनरेगा में भ्रष्टाचार किसी से छुपा हुआ नहीं है, जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा दलित आदिवासी समुदाय के सरपंचों और प्रधानों को उठाना पड़ता है, क्योंकि पहले तो उन्हें गांव के दबंगो और ऊंची जाती के लोगों से लड़ना पड़ता है, किसी तरह उनसे पार पा भी जाएं तो फिर उन्हें प्रशासनिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस मसले पर आप क्या सोचते हैं? क्या मनरेगा नागरिकों की इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम हो पाएगी?

बुनियादी सुविधाएं सरकार द्वारा प्रदान की जाती हैं, लेकिन जनता को उनकी सुविधाएं ठीक से नहीं मिलती हैं क्योंकि जिस तरह से लोग निजी स्कूलों में अब सरकारी स्कूलों की बात कर रहे हैं, सरकारी स्कूलों में ऐसे लोग हैं जो अपने बच्चों को भेजते हैं लेकिन वहां सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं

बिहार राज्य के नालंदा जिले के हिलसा प्रखंड से कुंजन कुमार ने मोबाईल वाणी के माध्यम से बताया कि प्राइवेट अस्पताल में सरकारी अस्पताल के तुलना में सुविधा ज्यादा मिलती है। इसलिए समृद्ध लोग प्राइवेट अस्पताल में जाते हैं

बिहार राज्य के नालंदा जिला के हिलसा प्रखंड से कुंजन ने मोलाइल वाणी ले माध्यम से बताया कि सरकारी अस्पतालों में डाक्टर और नर्स समय से नही आते हैं और सुविधाओं का अभाव होता है। इस कारण समृद्ध लोग प्राइवेट अस्पताल में जाते हैं। गरीबों को मज़बूरी में सरकारी अस्पताल जाना पड़ता है

बिहार राज्य के नालंदा जिला के हिलसा प्रखंड से कुमारी आकांक्षा ने मोलाइल वाणी ले माध्यम से बताया कि गांव के स्कूल में अच्छे से पढ़ाई हो रहा है। शिक्षक हर पीरिएड में समय से आते हैं और अपना विषय पढ़ाते हैं

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बिहार राज्य के नालंदा जिला के नगरनौसा प्रखंड से रिंकू कुमारी मोबाइल वाणी के माध्यम से जानना चाहती है कि क्या राशन में मिलने वाले चावल में प्रोटीन मिला कर दिया जाता है

भारत का आम समाज अक्सर सरकारी सेवाओं की शिकायत करता रहता है, सरकारी सेवाओं की इन आलोचनाओं के पक्ष में आम लोगों सहित तमाम बड़े बड़े अर्थशास्त्रियों तक का मानना है कि खुले बाजार से किसी भी क्षेत्र में काम कर रही कंपनियों में कंपटीशन बढ़ेगा जो आम लोगों को बेहतर सुविधाएं देगा। इस एक तर्क के सहारे सरकार ने सभी सेवाओं को बाजार के हवाले पर छोड़ दिया, इसमें जिन सेवाओं पर इसका सबसे ज्यादा असर हुआ वे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर पड़ा है। इसका खामियाजा गरीब, मजदूर और आम लोगों को भुगतना पड़ता है।