मज़दूरों की दुश्मन तो यह पूरी व्यवस्था है न कि कोई क्षेत्र, न कोई भाषा. मज़दूरों को खटाने के लिए कम्पनियों ने आज मज़दूर को मज़दूर का दुश्मन बना दिया और मज़दूर सस्ते होते ही कंपनियों में बने सामान की कीमत बढ़ जाती हैं और हम मज़दूर बट बट के इनकी सामानों की क़ीमत को बढ़ाते रहते है - क्योंकि इनके माल का कोई क्षेत्र नहीं, कोई भाषा नहीं, कोई राष्ट्र नहीं,कोई मुल्क़ नहीं कुछ है तो सिर्फ़ पैसा क्योंकि माल तैयार करने के लिये मज़दूर मिलना चाहिए। पूरी बातों को जानने के लिए इस ऑडियो पर क्लिक करे.