ग़ाज़ीपुर। श्रावण मास की शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि 25 जुलाई को उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र व शिवयोग में नागपंचमी मनाई गई। पंचमी की तिथि 24 जुलाई को दोपहर 2 बजकर 33 मिनट से प्रांरभ होकर 25 जुलाई को दोपहर 12 बजकर 1 मिनट तक रही। नागपंचमी के अलावा प्रत्येक माह की पंचमी तिथि के देव नागदेवता ही होते हैं। ज्योतिषाचार्य के अनुसार नागपंचमी का ज्योतिष में काफी महत्व होता है। इस दिन जिन जातकों की कुंडली में कालसर्प, पितृदोष, सहित अन्य दोष होते है, उनका निवारण भी होता है। नागदेवता की पूजा आराधना कर लोग अपने घर में ही कालसर्प, पितरदोष आदि दोषों के प्रभाव को कम कर सकते हैं। इसके लिए जातक को नागपंचमी के दिन नागदेव के दर्शन करना चाहिए। साथ ही नागदेवता के निवास स्थल बांबी आदि की सुंगध, पुष्प, चंदन आदि से पूजा आराधना करना चाहिए। साथ ही नागदेवता के सामने अपने समर्पण स्वरूप दूध रखना चाहिए। हालांकि सांप दूध नहीं पीते हैं, लेकिन दूध का रंग सफेद होता है और यह समर्पण का प्रतीक माना जाता है। इसलिए प्राचीनकाल से यह मान्यता है कि नागदेवता के सामने अपना समर्पण करने से वह कभी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। कोरोना महामारी के चलते इस समय किसी भी देवता अथवा भगवान की मूर्ति को छूना मना है। साथ ही किसी भी मंदिर में नागदेवता पर दूध आदि अर्पित नहीं कर सकते हैं। इसलिए भक्त अपने घरों पर ही नागदेवता की पूजा अर्चना किये। ग़ाज़ीपुर। श्रावण मास की शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि 25 जुलाई को उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र व शिवयोग में नागपंचमी मनाई गई। पंचमी की तिथि 24 जुलाई को दोपहर 2 बजकर 33 मिनट से प्रांरभ होकर 25 जुलाई को दोपहर 12 बजकर 1 मिनट तक रही। नागपंचमी के अलावा प्रत्येक माह की पंचमी तिथि के देव नागदेवता ही होते हैं। ज्योतिषाचार्य के अनुसार नागपंचमी का ज्योतिष में काफी महत्व होता है। इस दिन जिन जातकों की कुंडली में कालसर्प, पितृदोष, सहित अन्य दोष होते है, उनका निवारण भी होता है। नागदेवता की पूजा आराधना कर लोग अपने घर में ही कालसर्प, पितरदोष आदि दोषों के प्रभाव को कम कर सकते हैं। इसके लिए जातक को नागपंचमी के दिन नागदेव के दर्शन करना चाहिए। साथ ही नागदेवता के निवास स्थल बांबी आदि की सुंगध, पुष्प, चंदन आदि से पूजा आराधना करना चाहिए। साथ ही नागदेवता के सामने अपने समर्पण स्वरूप दूध रखना चाहिए। हालांकि सांप दूध नहीं पीते हैं, लेकिन दूध का रंग सफेद होता है और यह समर्पण का प्रतीक माना जाता है। इसलिए प्राचीनकाल से यह मान्यता है कि नागदेवता के सामने अपना समर्पण करने से वह कभी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। कोरोना महामारी के चलते इस समय किसी भी देवता अथवा भगवान की मूर्ति को छूना मना है। साथ ही किसी भी मंदिर में नागदेवता पर दूध आदि अर्पित नहीं कर सकते हैं। इसलिए भक्त अपने घरों पर ही नागदेवता की पूजा अर्चना किये। सदियों बाद पहली बार ऐसा हुआ जब कुश्ती-दंगल के अखाड़े सूने रहें और न ही पहलवान धरती चूमकर दांव आजमा सकें। पिछले वर्ष पर निगाहें डालकर देखा जाए तो नागपंचमी के आगमन को लेकर बच्चों व युवाओं में खासा उत्साह रहता था। नगर सहित जनपद के विभिन्न क्षेत्र के अखाड़ों पर दंगल व प्रदर्शन की तैयारियां काफी पहले से आरंभ हो जाती थी और अखाड़ों की मिट्टियों को तैयार किया जाने लगता था लेकिन इस बार कोरोना के चलते यह सब मुमकिन नहीं हो सका। ऐसे में इस वर्ष अखाड़ों पर होने वाले दंगल के शोर नहीं सुनाई पड़ें। डालकर देखा जाए तो नागपंचमी के आगमन को लेकर बच्चों व युवाओं में खासा उत्साह रहता था। नगर सहित जनपद के विभिन्न क्षेत्र के अखाड़ों पर दंगल व प्रदर्शन की तैयारियां काफी पहले से आरंभ हो जाती थी और अखाड़ों की मिट्टियों को तैयार किया जाने लगता था लेकिन इस बार कोरोना के चलते यह सब मुमकिन नहीं हो सका। ऐसे में इस वर्ष अखाड़ों पर होने वाले दंगल के शोर नहीं सुनाई पड़ें।