जिउतपुत्रिका का व्रत बहुत ही कठिन माना जाता है लोगों और संत महात्मा जानकार माताओं का कहना है कि महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वथामा अर्जुन के पुत्र वधू उत्तरा के गर्भ को नष्ट करने हेतु ब्रह्मास्त्र चलाया और उत्तरा समर्पित कृष्ण भक्त थी उन्होंने श्री कृष्णा और माता रुक्मणी लक्ष्मी का ध्यान किया और गर्भस्थ शिशु की रक्षा प्रार्थना कि श्रीकृष्ण ने ब्रह्मास्त्र को कुछ पल के लिए रोका मां लक्ष्मी आदि शक्ति ने गर्भस्थ संतान को सुरक्षा कवच से ढक दिया जिस ब्रम्हास्त्र को कोई रोक नही सकता उस ब्रम्हास्त्र का मन रखने के लिए श्रीकृष्ण जी ने छोड़ दिया ब्रम्हास्त्र ने उत्तरा के गर्भ को नष्ट किया उसके बाद तीनों शक्तियों ने मिल कर उस संतान को पुनः जीवित की और तबसे ही इस शक्ति का आवाहन जिउतपुत्रिका के नाम से माताएं करती हैं । उस दिन सभी माताएं अपने अपने पुत्रों की रक्षा के लिए उस शक्ति का आवाहन जिउतपुत्रिका के नाम से ब्रत रख कर करती हैं