संतकबीरनगरः अगहन महीने की ठंड में मजदूरों और राहगीरों को खुले आसमान के नीचे रात गुजारनी पड़ रही है। शहर में रैन बसेरा संचालित नहीं है। एक सेल्टर होम है जहां पहले से ही कुछ लोग रह रहे हैं। सबसे अधिक परेशानी मेंहदावल बाईपास स्थित बस स्टैंड पर राहगीरों को हो रही है। यहां पर कोई रैन बसेरा नहीं है। नपा ने जिसे पहले रैन बसेरा बनाया था उसे अब दूसरे को एलॉट कर दिया गया है। दूर दराज से आने वाले यात्री रात में रोडवेज पर उतरने के बाद खुले में रात गुजारने को मजबूर हैं। कड़ाके की ठंडक में चल रही पछुआ हवाएं उनका कदम -कदम पर इम्तिहान ले रही हैं। इस ठंडक में लोग रतजगा करने को मजबूर हैं। जिनके पास सुविधाएं हैं वह अपने घरों से वाहन मंगाकर चले ज रहे हैं, जिन लोगों के घर से कोई आने वाला नहीं है वह पूरी रात रतजगा कर रहे हैं। इसके अलावा मजदूर तबके के लोगों को सबसे अधिक परेशानी हो रही है। लेकिन जिम्मेदारों की नजर इस ओर नहीं पड़ रही है। अलाव का अभी इंतजाम नहीं ठंड तेजी से बढ़ रही है, लेकिन अभी तक अलाव नहीं जल रहा है। सबसे अधिक दिक्कत सुबह के समय मजदूरों को हो रही है। काम की तलाश में दूर दराज से मजदूर मेंहदावल चौक पहुंच जाते हैं। अलाव का इंतजाम नहीं होने की वजह से पॉलिथीन व कागज बटोर कर जलाते हैं और उसी से अपनी ठंडक को दूर भगाने की कोशिश करते हैं। चेयरमैन जगत जायसवाल का कहना है कि टेंडर पास हो चुका है। 25 दिसम्बर के बाद 18 सार्वजनिक स्थानों पर अलाव जलेगा। रेलवे स्टेशन के निकट 50 बेड का सेल्टर हाउस बना हुआ है। इस केंद्र का संचालन किया जा रहा है। रात में एक कर्मचारी आने वाले राहगीरों को आईकार्ड होने पर रात रुकने की अनुमति देता है, लेकिन इस बारे में लोगों को जानकारी नहीं हैं और रोडवेज से लगभग चार किमी दूर होने की वजह से यहां पर कोई आना भी मुनासिब नहीं समझता है। इसके अलावा बंजरिया मोहल्ले में दस बेड का एक रैन बसेरा हैं, लेकिन शहर के अंदर होने की वजह से यहां पर लोग पहुंच ही नहीं पाते हैं। हालांकि वह जर्जर है और वहां पर हमेशा ताला ही बंद रहता है। रैन बसेरा को व्यवस्थित करने के निर्देश दिए गए हैं। बाईपास पर भी जल्द ही रैन बसेरा संचालित हो जाएगा। इसमें किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं है। जय प्रकाश, एडीएम, संतकबीरनगर