मोतिहारी नरसिंह बाबा मंदिर परिसर में आयोजित रामचरितमानस यज्ञ व श्री राम कथा के तृतीय दिवस का आगाज मानस मंदाकिनी वैदेही शरण के भक्ति में रस धारा में डुबकी लगाने की प्रेरणा से हुआ । उन्होंने कहा कि यदि रामकथा रूपी मंदाकिनी में मनुष्य का मन गोत्र लगाने लगे तो समझ लेना चाहिए कि चौरासी लाख योनियों से मुक्त हो जाने का मार्ग मिल गया है । अन्यथा की स्थिति में, भवसागर से पार पाना असंभव सा है । इसके पश्चात मानस रत्न पंडित राम गोपाल तिवारी ने बताया कि सीता आत्मा है और राम परमात्मा । आत्मा ज्ञान का अनुरागी होता है जबकि परमात्मा भक्ति का अनुरागी है । उन्होंने कहा कि ज्ञान श्रद्धा से प्राप्त होती है, जबकि भक्ति विश्वास से । यही कारण है कि माता सीता रूपी आत्मा को राम रूपी ज्ञान की इच्छा होती है तो वह पुष्प वाटिका में भवानी (श्रद्धा) के पास जाती हैं । इसी प्रकार राम रूपी ज्ञान को भक्ति रूपी सीता की आकांक्षा है तो वह शिव (विश्वास) के पास जाते हैं। शबरी प्रसंग की भावपूर्ण व्याख्या करते हुए बताया किस शबरी के कंदमूल फल बाकी ऋषियों-मुनियों के कंदमूल फल से मीठा वह रुचकर स्वाद वाला प्रभु राम को लगा । क्योंकि शबरी का फल प्रेम के रस से भरा हुआ था और प्रभु राम को सिर्फ प्रेम ही प्यारा है। परमात्मा के निर्गुण निराकार और सगुण साकार स्वरूप का विशद व्याख्या करते हुए पुष्प वाटिका प्रसंग पर वापस लौटते हुए तृतीय दिवस की कथा को समेटने का प्रयास किया । कहा कि माता सीता के साहब पुष्प वाटिका भ्रमण कर रही सखियों में से एक सखी,जो तनिक विलग हो गई,को सबसे पहले प्रभु राम पर दृष्टि गयी। उसने वापस आकर सखियां से कहा कि वह जिसे देखकर आ रहे है उसे देखने के बाद अब इस संसार रूपी वाटिका को देखने की कोई लालसा ही नहीं हो रही है । मंच संचालन प्रो रामनिरंजन पांडेय ने किया। मौके पर अवध किशोर द्विवेदी, कामेश्वर सिंह, संजय कुमार तिवारी, मदन शर्मा शास्त्रत्त्ी, भोला सिंह, ठाकुर साह थे।