बिहार राज्य के जिला जमुई के गिद्धौर प्रखंड से संजीवन कुमार सिंह जी मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते हैं कि वैसे तो रक्षाबंधन से जुड़ी कई कहानियां सुनने में आती है और यह माना जाता है कि इन्हीं के बाद यह पर्व प्रचलन में आया। इनमें से एक कथा भगवान श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर से जुड़ी हुई भी है। इसके बावजूद मुख्य रूप से तीन कथाओं को राखी के तौर पर रक्षा सूत्र बांधने का प्रचलन शुरू करने का कारण माना जाता है। इनमें से दो भगवान विष्णु और राजा बालि से संबंधित है जबकि तीसरी कथा देवराज इन्द्र और बृहस्पति जी से संबंधित है।पहली कथा कुछ इस तरह की है जब दानवेंद्र राजा बाली ने अपनी 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इंद्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा करने की प्रार्थना की, इस पर भगवान वामन(बौना) अवतार में ब्राह्मण का वेश धारण कर बालि से भिक्षा मांगने पहुंचे। गुरु के मना करने पर भी राजा बाली ने उन्हें 3 डेग यानी तीन पग से नाप लेने योग्य भूमि दान करने का वचन दे दिया। जिसके बाद भगवान ने 3 डेग में सारा आकाश पाताल और धरती नाप लिया।इस पर राजा बालि ने अहंकार छोड़कर विष्णु जी को रक्षा सूत्र बांधा और अपनी रक्षा कि,इसके बाद भगवान ने राजा बलि को रसातल में भेज दिया तभी से इस पर्व को रक्षाबंधन के रुप में मनाया जाता है।भगवान विष्णु द्वारा राजा बलि के अभिमान को चकनाचूर कर देने के कारण यह त्यौहार बलेव नाम से भी कहीं-कहीं जाना जाता है।कहते हैं जब राजा बाली रसातल में चला गया तब राजा बलि ने अपनी भक्ति के बल से विष्णु जी से रात- दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षा सूत्र बांधकर अपना भाई बना लिया। इसके बाद उन्होंने बलि से अपने पति को वापस मांग लिया और अपने साथ विष्णु लोक ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था,तभी से इस दिन ही रक्षाबंधन की परंपरा शुरू हो गई।