दो दिनों की आम हड़ताल में दिल्ली एनसीआर का मंजर कुछ अजीब था. दृश्य दिमाग में घुमते रहे और उन्हें कागज़ पर उतारने की जद्दोजदह चलती रही। और अब इन मेहनतकश लोंगों के इरादों को किसी सहारे की ज़रूरत नहीं है और इनको पहचान दिलाने वाले लोंगों से इनकी दूरियां साफ नज़र आ रहीं थीं।पूरी कहानी को सुनने के लिए इस ऑडियो पर क्लिक करें।
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Jan. 22, 2019, 12:45 a.m. | Tags: int-RKD personal expressions