1. भारत में न्यूनतम वेतन से कम मिल रही सैलरी, सख्ती से लागू हो वेतन कानून : ILO :-- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के मुताबिक पिछले दो दशक से भारत में वेतन और असमानता की समस्या बनी हुई है। महिला-पुरुष, नियमित-अनियमित और शहरी-ग्रामीण सभी मामलों में असमानता बरकरार है। आईएलओ की ओर से जारी की गई 'इंडिया वेज रिपोर्ट' के मुताबिक में ग्रामीण इलाकों में अनियमित वर्कर के तौर पर काम करने वाली महिलाओं का वेतन देश में सबसे कम 104 रुपए रोजाना है। उन्हें शहरों में संगठित क्षेत्र के पुरुषों की तुलना में सिर्फ 22 फीसदी वेतन मिलता है। इसमें ये भी कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के कारण गरीबी में कमी आर्इ है। उद्योग आैर सर्विस सेक्टर में श्रमिकों के अनुपात में रोजगार के क्षेत्र में हल्का बदलाव ही आया है। 47 प्रतिशत मजदूर अब भी कृषि क्षेत्र में ही काम कर रहे हैं। गौरतलब है कि 1990 में राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन लागू किया गया था जिसे 2017 में बढ़ाकर 176 रुपये प्रतिदिन कर दिया गया था। लेकिन इसे कानूनन बाध्य नहीं बनाया गया है। हालांकि 1970 से ही इसे कानूनी तौर पर बाध्य बनाने पर लगातार चर्चा हो रही है। आईएलओ ने सभी कर्मचारियों को लीगल कवरेज देने, न्यूनतम वेतन का ढांचा आसान बनाने और प्रभावी कदम उठाने की बात कही है। 2. चीनी उत्‍पादों के बढ़ते आयात पर संसदीय समिति ने जताई चिंता, सरकार से की घरेलू इंडस्‍ट्री को सुरक्षा देने की मांग:-- सस्ते और कम गुणवत्ता वाले चीनी माल की देश में बढ़ती डंपिंग और उससे घरेलू उद्योग को होने वाले नुकसान पर चिंता व्यक्त करते हुए संसद की एक स्थायी समिति ने सरकार से किसी भी तरह के अवैध, संरक्षणवादी और अनुचित व्यापार व्यवहार के समक्ष घरेलू उद्योगों को पूर्ण सुरक्षा देने की सिफारिश की है। स्थायी समिति ने अमेरिका और यूरोपीय संघ का उदाहरण देते हुए कहा है कि ये देश अपने घरेलू उद्योगों को होने वाले नुकसान और रोजगार के अवसर घटने पर काफी सक्रिय होकर कदम उठा रहे हैं। इसे देखते हुए समिति का मानना है कि भारत सरकार को भी घरेलू उद्योगों के हित में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के तहत उपलब्ध रक्षात्मक उपायों का अधिक सक्रियता के साथ उपयोग करना चाहिए। रिपोर्ट के अनुसार 2007-08 में चीन के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार जहां 38 अरब डॉलर था, वहीं यह 2017-18 में बढ़ कर 89.6 अरब डॉलर पर पहुंच गया। वर्ष 2013-14 में देश के कुल आयात में चीन से होने वाले आयात का हिस्सा 11.6 प्रतिशत था, जो कि 2017-18 में तेजी से बढ़कर 16.6 प्रतिशत पर पहुंच गया। इसका रोजगार के अवसरों को भी नुकसान हुआ है। इनमें कपड़ा उद्योग के अलावा सौर ऊर्जा उद्योग प्रमुख है, जो तेजी से बढ़ रहा है।