झारखण्ड मोबाइल वाणी के माध्यम से इस एपिसोड के माध्यम से वे महिला के साथ होने वाली आर्थिक हिंसा के बारे में कहना चाह रहे है की जब महिलाओ के घरेलु हिंसा के बारे में बात करते है तो अक्सर शारीरिक,मानसिक या योनिक हिंसा को ही घरेलु हिंसा के रूप में देखते है लेकिन हिंसा का और भी रूप है जिसे समझना बहुत जरुरी है ये है आर्थिक हिंसा यानि महिला को पैसा या बाकि अन्य संसाधनों से वंचित रखना जो की उसे कानूनन रूप से मिले हुए है जैसे की स्त्री धन.आर्थिक हिंसा महिलाओ को मनोवैज्ञानिक को छति पहुचाने,उनके गतिबिधयो को नियंत्रित करने के मकसद से की जाती है.पुरुषो तथा महिलाओ को भारतीय लोकतंत्र में में समानता के अधिकार दिए गए है लेकिन जब एक वैक्ति अपने परिवार के किसी महिला को उसके काम काज के अधिकार से दूर रखने की कोशिस करता है,उसे नौकरी करने से रोकता है तो वह उसके समानता के अधिकार को छिनने की कोशिस करता है.पुरुष द्वारा यह कोशिश की जाती है की महिला उसपर निर्भर रहे क्योकि जब वह आत्मनिर्भर होती है तो दुसरे के मनमानी के खिलाफ लड़ना जानती है और उस मनमानी को मानने से साफ इंकार कर देती है अगर महिला नौकरी करने वाली है तो उसे नौकरी करने से रोकी जाती है तथा पूरी तरह घर सँभालने की जिमेवारी उठाने के लिए मजबूर किया जाता है और अगर वह काम करके घर थोडा देर से पहुचे तो ताने कसे जाते है और काम काज छोड़कर रहने की हिदायते दी जाती है और अगर वह अपनी पति से जायदा कमाए तोमनो जैसे मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है.महिला को आत्म निर्भर होने से रोकने के लिए तमाम कोशिस की जाती है.और अगर जो महिला काम काज नहीं करती है उसके नाम पर कोई सम्पति है तो भी उसे आर्थिक हिंसा सहनी पड़ती है.एक महिला सम्पति की मालकिन होने के बावजूद महिला हिंसा की शिकार होती है,परिवार द्वारा उसकी सम्पति छिनने की कोशिस की जाती है,अगर कोई पति या परिवार उसकी सम्पति को धोके से अपने नाम पर करवाता है तो उसे आर्थिक हिंसा का रूप मानते है.