ग़ुलामी की ज़ंजीरें टूटती जा रही हैं नौकरी के नाम पर नौकर बनाने वाले सरमायेदार अपनी सरकारों को तबाही के दहलीज़ पर ले आएं हैं। बिना काम के काम पैदा करना,दलाल पैदा करना,दलालों के लिए काम पैदा करना,दलालों के नाम पर काम पैदा करना और नौकरी देना कंपनियों और उनकी सरकारों के बस में नहीं रहा। जहाँ दुनियाभर में नौकरियों का बाजा बज गया है वहीं आत्मनिर्भरता शब्द नया झुनझुना लेकर प्रजातांत्रिक बाज़ार में आया है। यह कॉम्पनियों की सरकारों के लिए दलाली,ठेकेदारी,जोड़ीदारी आदि का रास्ता आसान करता है जहां दुनियाभर की सरकारें केवल ठेका देने का विभाग बन गई वहीं आत्मनिर्भरता,वोट निर्भरता बनाये रखने का नया फार्मूला है जो यह बताता है कि प्रजातांत्रिक बाज़ार में निर्भरताओं का संकट गहरा रहा है। जिसको आत्मनिर्भरता के माध्यम से बचाने का प्रयास किया जा रहा है। नौकरी निर्भरता,आत्मनिर्भरता, नेता निर्भरता, कंपनी निर्भरता, आदि पूँजी निर्भरताओं के भिन्न भिन्न रूप हैं जो श्रम संकट जूझ रहे हैं। योजनाओं के चक्रवह में उलझी सरकारें,हम मजदूरों को व्यवस्थाओं में उलझाने में असमर्थ हो गईं हैं? अपने विचार और सवाल हमसे जरूर साझा करें नंबर 3 दबाकर और अगर यह डायरी आपको पसंद आई हैं और दूसरों से साझा करना चाहतें तो दबाएं नंबर 5 शुक्रिया धन्यवाद|