राज्य छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव से वीरेंद्र गंधर्व झारखण्ड मोबाईल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि एक ज़माना था जब कुम्हार का समाज में अत्यंत सम्मान था। और मिटटी के बर्तन भी धडल्ले से बिका करते थे।मिटटी के बर्तनो में ही खाना बनाया जाता था जो अत्यंत स्वादिष्ट होता था। और पर्यावरण के लिए भी लाभदायक होता था। किन्तु आज कुम्हारों की दशा अत्यंत दयनीय है। पहले गर्मी के दिनों में लोग मिटटी के बर्तन खरीदते थे ठंडा पानी पिने के लिए किन्तु आज फ्रिज आ गया है तो लोग मिटटी के बरतन नहीं खरीदते हैं । जिस कारण से उनकी रोजी रोटी पर असर पड़ा। इसलिए लोगो को मिटटी के बर्तनो का महत्त्व समझाना होगा। तभी जा कर पुरानी पीढ़ी का निर्माण होगा। और कुम्हारों की रोजी रोटी बढ़ेगी।