झारखंड राज्य के बोकारो ज़िला से झारखंड मोबिल वाणी के माध्यम से नागेश्वर महतो बता रहे है कि भारतीय संस्कृति ,साहित्य, धर्म एवम सामजिक क्षेत्र में कुम्हारों की कला कृतियों का मत्वपूर्ण स्थान रहा है। कुम्हार द्वारा निर्मित दीप, प्याला, घड़ा ,खिलौने आदि का उपयोग जन्म से मृत्यु तक किया जाता है। दीप,कलश के बिना जनमोत्स्व वैवाहिक कार्यक्रम एवम अन्य धार्मिक आयोजन अधूरा है। कुम्हार के द्वारा हस्त निर्मित बर्तनो उपयोग समाज में मनुष्य आजीवन करते रहतें हैं। दीप से लेकर अन्य मिट्टी के बर्तनो का विक्रय कर कुम्हार आजीविका चलाने का इतिहास गावहा है।कुम्हार दीवाली का बेसब्री से इंतजार करते थे ,पर आज के बदलती प्रस्तितियों में कुम्हार द्वारा निर्मित दीप सहित अन्य मिट्टी के बने वस्तु का उपयोग नहीं करना चाहती। आधुनिक युग में प्लास्टिक के तरह-तरह के डिजाइनों वाले छोटे -छोटे बरतनों का उपयोग का होड़ मचा हुआ है। जिससे पर्यावरण प्रदूषित होती है। कुम्हारों द्वारा निर्मित मिट्टी के बर्तनो के विक्रय नहीं होने से उनकी यह वृति लुप्त हो गई है।कुम्हार चिंतित हो अन्य धंधे में लिप्त हो रहें हैं साथ ही रोज़गार की तलाश में पलायन कर रहे है। कुम्हार की इस वृति को जीवंत रखने के लिए उन्हें ना तो किसी भी प्रकार का सहयोग मिलता है और ना ही प्रोत्साहन। कुम्हार द्वारा निर्मित बर्तन का उपयोग भरपूर करना समाज का बहुत बड़ा दायित्व है।