झारखण्ड राज्य के हज़ारीबाग ज़िला के दारू प्रखंड से बलराम शर्मा मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि जहाँ आधुनिकरण के आने से मुश्किलों भरी कार्य आसान हो गए हैं तो वही पुरखों की परम्परा और सभ्यता लुप्त होते जा रहे हैं।अपनी हाथों की कला से सादी एवं गंदी मिट्टी को नया रूप निखार प्रदान करने वाले कुम्हार की स्थिति आज के युग में दयनीय हो गई हैं।आज समाज विकास की सीढियाँ चढ़ने में व्यस्त हैं। आधुनिकरण के दौर में कुम्हारों द्वारा बनाई गई मिट्टी की कलाकृतियाँ की महत्व घटती ही जा रही हैं। बाज़ार की वस्तुएँ की माँग इस कदर बढ़ गई हैं कि लोग कुम्हारहों द्वारा बनाई गई मिट्टी के बर्तन,खिलौने,मूर्तियाँ,दीये आदि को उतना महत्व नहीं देते हैं।कुम्हार महनत से मिट्टी को नया रूप दे कर दीया,मूर्तियाँ आदि बना कर बाज़ारों में बेचने लाते तो हैं परन्तु लोग हस्तकला को छोड़ बाज़ारों में बिकनें वाली कृत्रिम चमचमाती लाइट,मूर्तियाँ,दीया आदि माँग करते हैं।कुम्हारों की वस्तुएँ बिक न पाने की वज़ह से उनकी जीविका सुचारु ढंग से आगे नहीं बढ़ पाती हैं।जो कुम्हार दूसरे के घरों में रोशनी लाने हेतु दीये बनाती हैं उन्ही कुम्हारों की जिन्दगी अंधेरें में बीतती हैं। देखा जाता हैं कि कम लागत में बिकने वाली कुम्हार द्वारा निर्मित वस्तुएँ,चीनी उत्पादों के सामने टिक नहीं पाती क्योंकि चीनी उत्पादों की माँग बाज़ारों में अधिक हैं।कारणवश कुम्हार अपनी सभ्यता को त्यागने पर मज़बूर हो जाते हैं। बलराम जी बताते हैं कि हमारे समाज में कुम्हारों की जिंदगी ख़तरे में हैं,सरकार को कुम्हारों को ध्यान में रखते हुए चीन से आयत होने वाली वस्तुओं पर रोक लगाने की आवश्यकता हैं। देश में निर्मित एवं कुम्हारों द्वारा बनाई जाने वाली कलाकृतियों को बढ़ावा देना चाहिए।ताऔर परंपरा कि देश के विकास के साथ साथ समाज में कुम्हारों का भी विकास हो सके। और हमारी सभ्यता और परंपरा बरक़रार रहे।