झारखण्ड राज्य के हज़ारीबाग ज़िला से विष्णुगढ़ प्रखंड से राजेश्वर महतो झारखण्ड मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं, कि हाथों की कला को मिट्टियों में दीया,घड़ा,कलश,ढकनी के रूप में उतारने वाले कुम्हारों की स्थिति दयनीय हैं।झारखण्ड में खपरा,दीपक,घड़ा,ढकनी,गिलास मटका सहित अन्य जरुरत की वस्तुओं को बनाने वाले कुम्हारों की बेरोजग़ारी काफ़ी चिंताजनक बनी हुई हैं।कुम्हार अपने चक्का,डंडा तथा धागा से अंधा चूका बनाते समय लोगों में मुस्कुराहट लाता हैं परन्तु उसके चेहरे की खुशी छिन गई हैं,मुस्कुराहट के जग़ह झुर्रियाँ दिखाई पड़ती हैं।कुम्हारों से हुई बातचीत से राजेश्वर जी को पता चला कि उन लोगों को पहले की तरह काम नहीं मिल पाता हैं। पहले जहा खपरा का घर होता था उस वक़्त खपरे को उपयोग में लाने हेतु कुम्हारों की माँग ज़्यादा थी परन्तु अभी लोग ईंट सीमेंट का इस्तेमाल कर छत बनवाते हैं जिस कारण रोज़गार में कमी आई हैं। गर्मी के मौसम में ठन्डे पानी का सेवन के लिए घड़े को उपयोग में लाया जाता हैं वही जाड़े के मौसम में बोरसी की जरुरत पड़ती हैं। उसी तरह दीपावली में मूर्तियाँ एवं दीये की जरुरत पड़ती हैं,शादी एवं श्राद्ध में भी मिट्टी से बनी वस्तुओं की जरुरत पड़ती हैं।ऐसे ही मौसम में और कार्यक्रम के दौरान मिट्टी के उत्पादों की ज़्यादा माँग रहती हैं।बाकि शेष समय में कुम्हारों के काम ठप रहते हैं।इससे उनके जीविका में काफ़ी असर पड़ता हैं एवं परिवार के पालन-पोषण में कई परेशानियों का सामना पड़ता हैं।कुम्हारों द्वारा बनाए गए वस्तुएँ संतुलित वातावरण बनाए रखने में एहम भूमिका अदा करती हैं वही वर्तमान में कृत्रिम उत्पादों की बढ़ती माँग,चमचमाती साज सज्जा के सामान से वातावरण को नुकसान तो पहुँच ही रहा हैं साथ ही इसकी माँग के कारण कुम्हारों की आमदनी घटती जा रही हैं।इस कारण कुम्हारें रोज़गार के आभाव में महानगरों की ओर पलायन कर रहे हैं।सरकार द्वारा अच्छे दिन दिखाने वाली सपने झूठे साबित हो रही हैं।सरकार उनकी मदद के लिए कोई योजनाएँ लागू नहीं करती हैं।प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना में कुम्हारों को भी शामिल करनी चाहिए ताकि जानकारी धरातल पर उतरे और लोगों तक पहुँच पाए।