इस बरसात के बाद वो दिन दूर नही जब ये हाथी राजा आप ही के गांव के तरफ रुख़ करेंगे. हलवा पूरी ना सही पर खेत के फसल ज़रूर साफ करेंगे. और ये कोई आज की बात नही,बल्कि झारखंड मे ये समस्या पुराने समय से चली आ रही है. इस अनचाहे मेहमान के आने से केवल किसान की फसल ही नही बल्कि साधारण लोगो की जान पर भी बन आती है. कई बार लोग समूह मे रात भर जाग कर अपने खेतो की रक्षा करते रहते है तो कई बार तेज़ रौशनी, आग और ड्रम बजा कर हाथियों को भागने की कोशिश होती है. आप के समुदाय मे इनमे से किस प्रकार की कोशिश ज़्यादा होती है...? और इस मे सफलता किस हद तक मिल पति है...? प्रायः हथियाँ आख़िर जंगल छोड़ कर इंसानो के बस्तियों का रुख़ क्यों करती है...? आख़िर इस मौसम मे ऐसा क्या होता है जो हाथियों को गांवों के तरफ खिच लाती है...? और जब हथियाँ गाँवो के तरफ आती है तो आप के क्षेत्रा के वन विभाग अधिकारी कितनी सक्रिया रहती है..? प्रायोगिक तरीक़ो के तौर पर केरला मे मधु मख्ही पालन कर हाथियों को भगाया गया है तो तमिल नाडु मे PVC गण से भागने की कोशिश हो रही है. इधर ओड़िसा मे LED लाइट और स्कैयर गण के ज़रिए हाथी भागने का प्रयोग जारी है. ऐसे मे आप के क्षेत्रा मे हाथी भागने के लिए वन विभाग अधिकारी क्या कोई नया तरीका अपनाते है या पारंपरिक तरीके के सहारे ही अभी तक हाथी भागने की कोशिश होती है...? जब हाथी खेत का फसल चौपट कर चला जाता है तो किसान पर आफ़तो का सैलाब टूट पड़ती है. वो किसान जीने बड़ी मेहनत से फसल उगाया था ये सोच कर की वो इस फसल के पैसे से अपने परिवार का भारण पोषण करेगा, उसके हाथ मे अब कुछ भी नही बचता है. ऐसे मे उसका सहारा होता है केवल सरकारी मुआवजा. पर क्या वो मुआवजा सही समय से किसानो को मिल पाती है...? और यदि नही तो उन्हे किस तरह के समस्याओं का सामना करना पड़ता है...? आप के अनुसार क्या मुआवजा की राशि देते समय बरबाद हुए फसल का सही मूल्यांकन किया जाता हैं..?