वर्तमान समय में सरकार द्वारा जितनी व्यवस्था प्राथमिक शिक्षा के लिए की गई है अगर उसे सख्ती से जमीनी स्तर पर उतरा जाये तो छात्रों को किसी प्रकार की परेशानी नहीं होगी।और बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान की जा सकती है।लेकिन वर्तमान समय में शिक्षक एवं अधिकारी शिक्षा के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति करते नज़र आ रहे हैं।शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत 6 से 14 के सभी बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का प्रावधान है बावजूद इसके बच्चे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा वंचित है. आखिर इसके पीछे क्या वजह है और इसके लिए कौन जिम्मेदार है ? प्रतिवर्ष शिक्षक सरकार से वेतन बढ़ोतरी की मांग करते हैं लेकिन बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की पहल अपने स्तर से क्यों नहीं करते ? आखिर क्यों सरकारी विद्यालय के शिक्षक दोहरी नीति अपनाते हुए अपने बच्चों का दाखिला निजी और बड़े विधालय में करवाते हैं..?आज के शिक्षक और शिक्षिकाओं में पढ़ाने एवं ज्ञान बाँटने की ललक में कमी क्यों आने लगी है...? आपके अनुसार ऐसी कौन सी वजह है जिसके परिणाम स्वरूप शिक्षा महज एक व्यापार बनकर रह गई है और इसे रोकने के लिए सरकारी स्तर पर क्या प्रयास किये जाने चाहिए?