प्लान इंडिया,चेतना विकास,नव भारत जाग्रति केंद्र,यूनिसेफ,scpcr और मोबाइल वाणी के साझा प्रयास से बाल विवाह मुक्त झारखण्ड अभियान की नवीं कड़ी में आइये हम सुनते हैं बाल विवाह से जुडी एक कहानी जिसका नाम है "बबली का सफर" इस कहानी की आठवीं कड़ी में हमने सुना कि बबली की माँ उसका दाखिला ग्यारवीं में करवाने के लिए उसके पिता जी से बात करने को राज़ी हो गई... आइये आज की नवीं कड़ी में हम सुनते हैं कि बबली की माँ के समझाने पर बबली के पिता जी उसे पढ़ाने को तैयार हो जाते हैं लेकिन बबली को स्कूल जाने से मना कर देते है और घर पर तैयारी कर पढ़ाई करने को कहते हैं। सुनीता अपनी आगे की पढाई स्कूल में जा कर करती है।कई दिनों के बाद सुनीता बबली से मिलने उसके घर आती है और बबली को नए स्कूल के बारे में सब कुछ बताती है। सुनीता रोज स्कूल जा कर काफी समझदार हो गई है, साथ ही उसे कई सारी बातों की जानकारी भी हो गई है।लेकिन बबली के माता-पिता जी के एक फैसले से उसका नर्स बनने का सपना शायद अधूरा ही रह गया। तो साथियों आपके अनुसार क्या बबली के माता-पिता जी का बबली को घर पर पढ़ाने का फ़ैसला सही है...? क्या उनकी तरह आपको भी लगता है कि लड़कियों को ज्यादा पढ़ाने की जरुरत नहीं है...?