पटना (महताब आलम) - थैलिसिमिया एक रक्त जनित रोग है जो की मानव शरीर में हीमोग्लोबिन की उत्पादन को कम करता है और हीमोग्लोबिन द्वारा ही पूरी शरीर की कोशिकाओं में ऑक्सीजन को पहुँचाने का काम होता है. हेमोग्लोबिन का कम स्तर शरीर के विभिन्न अंगों में ऑक्सीजन की कमी करता है. इससे ग्रसित व्यक्ति के शरीर में रक्ताल्पता या एनीमिया की शिकायत हो जाती है. शरीर का पीलापन,थकावट एवं कमजोरी का एहसास होना इसके प्राथमिक लक्षण होते हैं. तुरंत उपचार ना होने पर थैलिसिमिया के मरीज के शरीर में खून के थक्के जमा होने लगते हैं. थैलिसिमिया के बारे में जागरूकता फ़ैलाने के उद्देश्य से हर वर्ष 8 मई को विश्व थैलिसिमिया दिवस मनाया जाता है. केयर इण्डिया के मातृ स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. प्रमोद ने बताया थैलिसिमिया एक गंभीर रोग है जो वंशानुगत बीमारियों की सूची में शामिल है. इससे शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा कम हो जाती है जो हीमोग्लोबिन के दोनों चेन( अल्फा और बीटा) के कम निर्माण होने के कारण होता है. अभी भारत में लगभग 1 लाख थैलिसीमिया मेजर के मरीज है और प्रत्येक वर्ष लगभग 10000 थैलिसीमिया से ग्रस्त बच्चे का जन्म होता है. अगर केवल बिहार की बात करें तो लगभग 2000 थैलिसीमिया मेजर से ग्रस्त मरीज है लक्षण: थैलिसिमिया से ग्रसित शिशु या व्यक्ति में ये प्रारंभिक लक्षण नजर आते हैं- • शरीर एवं आँखों का पीलापन • पीलिया से ग्रसित होना • स्वभाव में चिडचिडापन • भूख न लगना • थकावट एवं कमजोरी का महसूस होना क्या है उपचार- थैलिसिमिया से पीड़ित व्यक्ति को चेकअप के उपरांत उपचार किया जाता है. मरीज के शरीर में रक्ताल्पता के स्तर के अनुसार इलाज बताया जाता है और एनीमिया की स्तिथि गंभीर होने पर उन्हें खून चढ़ाने की सलाह दी जाती है. ज्यादा गंभीर स्तिथि ना होने पर मरीज को दवा खाने की सलाह दी जाती है एवं अत्याधिक गंभीर स्तिथि वाले मरीज को मज्जा प्रतिरोपण ( Bone Marrow Transplant ) की सलाह दी जाती है.