बंदे को हर बुराई से दूर रखकर अल्लाह के नजदीक लाने का मौका देने वाले पाक माह-ए- रमजान के रूहानी चमक के दौर से हम गुजर रहे हैं। यह बात इस्लामिक इतिहास के जानकार संत कोलंबा महाविद्यालय हजारीबाग के उर्दू विभागाध्यक्ष डॉ जमाल अहमद ने कही,उन्होंने कहा कि इस महीने में अल्लाह की तरफ से बरकत बरसाई जाती है। इस बरकत से पूरी दुनिया के साथ अपना देश- प्रदेश इस कोरोना महामारी से निकल जाए, आपसी मोहब्बत बरकरार रहे देश की गंगा जमुनी तहजीब पर कोई आंच ना आए, इसके लिए रोज करोड़ो हाथ उठा उठा कर रब की बारगाह में दुआ कर अपनी आत्मा की पाकीज़गी का जो हमें मौका मिल रहा है, यह हमारी खुशनसीबी ही है। पूरी दुनिया के साथ अपने देश को भी इस महामारी ने अपने जाल में जकड़ लिया है। इस महामारी के बारे में हमारे मन में सवाल उठने लगे हैं कि इसका वक्त कब तक चलेगा, आगे क्या होगा ? धीरे-धीरे गरीब मजदूर, मध्यवर्ग के सामने आर्थिक तंगी की चुनौतियां बढ़ रही हैं। कई मजहबी रहनुमाओं की सुने, तो यह महामारी हमारे पाप और नैतिक भ्रष्टाचार का नतीजा ही है। इससे बचने के लिए कुरान- ए -करीम में आया है कि अपनी संपत्ति का ढाई प्रतिशत जरूरतमंदों को दान करो। जो कोई इसमें कंजूसी करता है, उसका माल बर्बाद हो जाएगा और उनकी औलादें देने वालों में नहीं, बल्कि लेने वालों में शामिल हो जाएँगी। इस मुश्किल की घड़ी में हम सबको दिल खोलकर जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए आने वाले दिनों में ईद है, जिसे हम सादगी के साथ मनाएँ। मजहब-ए- इस्लाम हमे समानता और मानवता का सबक सिखाता है। अगर ईद में एक भाई नया लिबास और दूसरा भाई पुराने लिबास में नजर आए, तो यह मजहब -ए- इस्लाम के नियमों का उल्लंघन है। इस महामारी मैं ना जाने कितनी मांओं की गोंद उजड़ गई है, कितनी बहनों का सुहाग छीन चुका है। इस ईद में जो हम लाखों रुपया खर्च करते हैं, उसे सादगी से मना कर उस पैसे को जरूरतमंदों के बीच या आने वाले कल के लिए महफूज रखें। अल्लाह हमें देख रहा है, इस यक़ीन के साथ कि हम अपने रहन-सहन में संयम और सहनशीलता बरतें। इस यकीन के साथ ही हम और हमारा देश खुशहाल बन सकेगा ।