उत्तरप्रदेश राज्य के सुल्तानपुर से शहनवाज़ मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रही हैं कि किसानों की मांग और भारत रत्न मित्रों । नया जवान जय किसान भारत को किसानों को देने और किसानों को उनका अधिकार देने के लिए किसानों के आंदोलन का भारत सरकार के साथ बहुत पुराना संबंध है । आखिरकार , उनकी मांग बहुत बड़ी नहीं है । आज किसानों द्वारा उगाई गई फसल हमारे परिवार का पेट कम करती है , इसलिए सरकार को उनकी मांगों को पूरा करना चाहिए ।

देश के किसान एक बार फिर नाराज़ दिखाई दे रहे हैं। इससे पहले साल नवंबर 2020 में किसानों ने केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के रद्द करने के लिए दिल्ली में प्रदर्शन किया था और इसके बाद अगले साल 19 नवंबर 2021 को केंद्र सरकार ने तीनों कानून वापस ले लिए थे, हालांकि इस दौरान करीब सात सौ किसानों की मौत हो चुकी थी। उस समय सरकार ने किसानों की कुछ मांगों पर विचार करने और उन्हें जल्दी पूरा करने का आश्वासन दिया था लेकिन ऐसा अब तक नहीं हआ है। और यही वजह है कि किसान एक बार फिर नाराज़ हैं।

उत्तरप्रदेश राज्य के सुल्तानपुर से फर्रुद्दीन खान ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि वास्तविक समय में एक बहुत ही ज्वलंत मुद्दा है क्योंकि किसान फिर से दिल्ली की ओर बढ़ रहे हैं । पिछले किसान आंदोलन को कोई नहीं भूल सकता , उस आंदोलन में कितने किसानों की मौत हुई थी । सरकार इस समय भी यही काम कर रही है , किसानों को रोकने की उनकी मांग पूछने के बजाय , वे उनकी सड़कों को अवरुद्ध कर रहे हैं , यानी केले लगा रहे हैं । अवरोधक लगाए जा रहे हैं , यानी उन्हें रोकने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं , जबकि सरकार को सोचना चाहिए कि उन्हें कैसे रोका जाए । ये लोग मांग कर रहे हैं कि इसे कैसे लागू किया जाए , इसे किस रूप में लागू किया जाए , इसे कैसे लागू किया जाए ताकि किसानों को लाभ हो , किसान हमारे देश के खाद्य प्रदाता हैं अगर वे गरीब रहते हैं या नहीं ।

उत्तर प्रदेश राज्य के सुल्तानपुर जिला से गौस मोहम्मद मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि हमारे किसान भाइयों ने अपनी मांग को पूरा करने के लिए भारत सरकार के साथ कई बैठकें की हैं , लेकिन चीजें काम नहीं कर सकीं , इसलिए 13 फरवरी को धरना देने की घोषणा की गई ।सरकार और भारत के मुख्य न्यायाधीश से विनम्रतापूर्वक अनुरोध है कि किसानों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए उनके साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं होना चाहिए ।

सरकार को भारत रत्न देने के अलावा किसानों को उनके अधिकार भी देने चाहिए , आखिर उनकी मांग भी तो बहुत छोटी सी है कि उन्हें उनकी फसलों का बेहतर मूल्य मिले। हालांकि किसानों की इस मांग का आधार भी एम एस स्वामीनाथन समिति की सिफारिशें हैं जो उन्होंने आज से करीब चार दशक पहले दी थीं। इन चार दशकों में न जाने स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को लागू करने का वादा करके न जाने कितनी सरकारें आईं और गईं, इनमें वर्तमान सरकार भी है जिसने 2014 के चुनाव में इन सिफारिशों को लागू करने का वादा प्रमुखता से किया था। -------दोस्तों आप इस मसले पर क्या सोचते हैं, क्या आपको भी लगता है कि किसानों की मांगो को पूरा करने की बजाए भारत रत्न देकर किसानों को उनके अधिकार दिलाए जा सकते हैं? --------या फिर यह भी किसानों को उनके अधिकारों को वंचित कर उनके वोट हासिल करने का प्रयास है.

आप सभी ने बूथ कैप्चरिंग के बारे में तो सुना ही होगा, हो सकता है किसी ने देखा भी हो। मोटा-मोटी कहा जाए तो हर कोई जानता है कि बूथ कैप्चरिंग क्या होती है और कैसे होती है। इसको और बेहतर तरीके से समझना हो तो इस तरह से भी देखा जा सकता है कि भारत में होने वाले सभी प्रकार के चुनावों में पंचायत से लेकर संसद तक के चुनाव में सुरक्षा बल एक अनिवार्य जरूरत हैं। सुरक्षा बलों के बिना निष्पक्ष चुनावों की कल्पना भी नहीं की जा सकती। पिछले 75 सालों में इस एक मसले पर कुछ भी नहीं बदला है। यह हाल तब है जब पुलिस, प्रशासन और सुरक्षा बलों को देख कर डरने की प्रवत्ति आम है। ऐसे में कहना कि चुनाव निष्पक्ष होते हैं एक क्रुर मजाक से ज्यादा कुछ नहीं।

“एक राष्ट्र एक चुनाव” का विचार भले ही बहुत अच्छा है, इसके समर्थन में दिए जाने वाले तर्क की देश के विकास को गति मिलेगी, राजनीतिक दल हमेशा राजनीतिक के मूड में नहीं रह पाएंगे और कि इससे देश का पैसा बचेगा, विचार के लिहाज से बहुत अच्छा है। इन सब बातों को देखते हुए इसको स्वीकार किया जाना चाहिए, लेकिन मूल सवाल अब भी बना हुआ है कि केंद्र की सत्ता पर काबिज बड़े राजनीतिक दल अपने विस्तार की लालसा को रोक कर राज्यों की सरकारों को उनका काम करने देंगे, भले ही वह उनकी विचारधारा और पार्टी की सरकार न हो?

उत्तर प्रदेश राज्य के सुल्तानपुर जिला से फकरुद्दीन मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे है की यह मुद्दा विपक्ष में उठाया गया है , सरकार की गरीबी , इसलिए समय - समय पर आंकड़े जारी किए जाते हैं । हाल ही की तरह लोगों को मुफ्त राशन बांटा जा रहा है और इसे अगले पांच साल तक बांटा जाएगा या बजट में इसकी घोषणा की गई है , लेकिन क्या राशन देना ही गरीबी दूर करने का एकमात्र तरीका है ? यह संभव नहीं है कि राशन देने से लगड़ी भी पूरी तरह से खत्म हो जाएगी क्योंकि राशन के साथ - साथ शिक्षा , स्वास्थ्य जैसी कई अन्य चीजें भी हैं , जिनकी उन्हें अपनी गरीबी दूर करने की आवश्यकता होगी । भारत सरकार के लिए केवल राशन देने से भारत गरीब मुक्त हो जाएगा और जमीनी स्तर पर राशन या राशन की उपलब्धता देखना असंभव है । यदि आप किसी भी राशन की दुकान पर जाते हैं और राशन की गुणवत्ता की जांच करते हैं , तो आप पाएंगे कि राशन की गुणवत्ता सही नहीं है । लोगों का स्वास्थ्य भी बिगड़ सकता है , इसलिए उन्हें शिक्षा और स्वास्थ्य प्रदान करने के अलावा अकेले राशन देना गरीबी उन्मूलन का मुख्य कारण नहीं है । मनरेगा गाँव के स्तर पर चलती है , लेकिन मनरेगा की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है क्योंकि लोगों को काम के दिनों की निश्चित संख्या नहीं मिल पा रही है और भारत सरकार अपना बजट कम कर रही है । जब लोगों को काम नहीं मिलेगा तो उनकी गरीबी बढ़ेगी और मुद्रास्फीति अपने चरम पर होगी । मुद्रास्फीति बढ़ रही है । लोगों की आय कम हो रही है । लोग अपनी रोजी - रोटी कमाने में सक्षम नहीं हैं ।

सरकार का दावा है कि वह 80 करोड़ लोगों को फ्री राशन दे रही है, और उसको अगले पांच साल तक दिये जाने की घोषणा की है। वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में यह भी दावा किया कि उनकी सरकार की नीतियों के कारण देश के आम लोगों की औसत आय में करीब 50 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। इस दौरान वित्त मंत्री यह बताना भूल गईं की इस दौरान आम जरूरत की वस्तुओं की कीमतों में कितनी बढ़ोत्तरी हुई है।

सूचना क्रांति के इस दौर में सूचनाओं का अंबार है, इंटरनेट के आने से इसमें लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। इसका अंदाजा इस एक बात से लगाया जा सकता है कि वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म यूट्यूब पर एक मिनट में “पांच सौ घंटे” तक देखने लायक सामग्री अपलोड की जा रही है। वहीं, व्हाटसेप और फेसबुक मेसेंजर पर सात करोड़ मैसेज और 19 करोड़ ई-मेल हर मिनट भेजे जा रहे हैं। यह आंकड़े इंटरनेट के कुछ गिने चुने माध्यमों के हैं, पूरे इंटरनेट में इसके अलावा भी बहुत सारी सामग्री अलग-अलग माध्यमों में अपलोड की जा रही है।