उत्तरप्रदेश राज्य के सुल्तानपुर से फकरुद्दीन मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि महिलाओं को हर क्षेत्र में आरक्षण मिल रहा है लेकिन वह आरक्षण महिलाओं का नाम या महिलाओं की पहचान पूरी तरह से रसोई में भी छिपी रहती है, जैसे कि मुख्यमंत्री का चुनाव, उसमें आरक्षण होता है, यहां तक कि महिलाओं के लिए भी। जिस गाँव में महिला आरक्षण है, वहाँ सीटों का आरक्षण है, वहाँ महिलाएं खड़ी हैं, लेकिन जब वह जीतती है, तो काम पूरी तरह से उसके पति का भाई या घर वाला कोई व्यक्ति होता है। ताकि महिला की पहचान छूट जाए, महिला कहाँ गई है, कहाँ नहीं गई है, इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। इसी तरह भारत में हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है, लेकिन उनकी पहल की जा रही है। महिलाएं शिक्षित होती हैं, विशेष रूप से गाँवों और शहरों में, और शिक्षित होकर, वे अपने अधिकारों को जानती हैं। वे जानते हैं कि क्या करना है या नहीं करना है, लेकिन गाँव की महिलाएं अभी भी पिछड़ी हुई हैं। इस तरह उन्हें मान्यता मिलती है, यानी उनकी असली पहचान को दबाया जाता है, इसलिए इस पहचान को ऊपर उठाना पड़ता है, तभी देश आगे बढ़ सकता है।