आधुनिकता के दौर में गांव की सभ्यता एवं संस्कृत में कुछ बदलाव जरूर देखने को मिलते हैं किंतु लोगों की आस्थाएं आज भी देखने को मिलती हैं। आज भी लाखों श्रद्धालु कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर पवित्र गंगा नदी में डुबकियां लगाते हैं।पर स्नान दान पूजा पाठ के अलावा श्रद्धालु मेले व हटिया में जलेबियां खरीदना भी नहीं भूलेंगे। अगर किसी बात की कमी का एहसास होगा तो वह यही कि अब बैलों के गले में बंधे घंटे व घुंघरू की आवाज नदारत होगी। पहले एक दिन पूर्व से ही लोग बैलगाड़ियों को सजाकर वह बैलों को नहला-धुला कर स्नान की तैयारी में जुट जाते थे। एक से दो किलोमीटर लंबी लाइन बैलगाड़ियों की लग जाती थी। चांदनी रात में बैलों के गालों में घंटे घुंघरू की आवाज बहुत ही मनमोहक लगती थी।