घर की दीवार भी अब टूट कर मुँह चिढ़ा रही, बेरोज़गारी के जश्न में सबको शरीक होना था। बेरोज़गारी के दर्द को बयाँ करती ये पंक्तियाँ बोल रही हों जैसे कि अब तो घर की दीवारों को भी इंतजार है, अगली पीढ़ी के रोज़गार का। बेरोज़गारी आज भारत की ही नहीं वरन् विश्व की सबसे बड़ी सामाजिक-आर्थिक समस्याओं में से एक है।