साथियों, आपके यहां पानी के प्रदूषण की जांच कैसे होती है? यानि क्या सरकार ने इसके लिए पंचायत या प्रखंड स्तर पर कोई व्यवस्था की है? अगर आपके क्षेत्र में पानी प्रदूषित है तो प्रशासन ने स्थानीय जनता के लिए क्या किया? जैसे पाइप लाइन बिछाना, पानी साफ करने के लिए दवाओं का वितरण या फिर पानी के टैंकर की सुविधा दी गई? अगर ऐसा नहीं हो रहा है तो आप कैसे पीने के पानी की सफाई करते हैं? क्या पानी उबालकर पी रहे हैं या फिर उसे साफ करने का कोई और तरीका है? पानी प्रदूषित होने से आपको और परिवार को किस किस तरह की दिक्कतें आ रही हैं?

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धूल बनी आफत बीमारी का खतरा युपी फतेहपुर। इस 12 किमी के जर्जर मार्ग पर आवागमन के दौरान उड़ने वाली धूल के कारण करीब 15 हजार ग्रामीणों पर सांस की बीमारियों का खतरा मंडरा रहा है। मार्ग पर पड़ने वाले करीब एक सैकड़ा गांव में सड़क किनारे निवास करने वाले ग्रामीणों की माने तो वाहनों के तेज रफ्तार गुजरने के कारण उठने वाला धूल का गुबार घरों से लेकर नाक के जरिए शरीर के अंदर तक पहुंच रहा है। जिससे सांस की बीमारियों का खतरा बढ़ता जा रहा है। एक्सईएन पीडब्ल्यूडी एके शील ने बताया कि पूर्व में मार्ग का काम पास होने के बाद टल चुका है। जल्द ही मार्ग के पुन मंजूरी की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं।

युपी फतेहपुर औंग,। क्षेत्र में टायर फैक्ट्रियों की चिमनियों से निकलने वाला धुएं से क्षेत्रीय लोगो का दम घुट रहा है। प्रदूषण विभाग के रहमों करम पर चलने वाली इन फैक्ट्रियों के संचालकों द्वारा मनमानी करते हुए इस पर वीराम नहीं लगाया जा रहा है। जिससे उनकी जेबों का वजन तो बढ़ रहा है लेकिन क्षेत्रीय लोग खासे हलकान हो रहे है। क्षेत्र के आशापुर डांकबंगला, बनियन खेड़ा रोड, रामपुर फैक्ट्री एरिया सहित रावतपुर मोड़ पर टायर फैक्ट्रियों का संचालन बिना रोकटोक कराया जा रहा है। जिससे निकलने वाले जहरीले धुएं ने क्षेत्र की आबो हवा को जहरीला बना दिया है। पर्यावरण में फैलने वाले फैक्ट्री के प्रदूषण के चलते क्षेत्र के लोगों को सांस लेने में दिक्कतें आ रही है। वहीं इस जहरीले धुएं के कारण क्षेत्रीय लोगो में दिल की बीमारी के रोगियों की संख्या बढ़ने के साथ ही क्षयरोग, आंखों की एलर्जी, दमा आदि गंभीर बीमारियों का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। शैलेंद्र प्रताप सिंह व किसान सुनील ने बताया कि टायरों को बॉयलरो में जलाकर तेल निकाला जाता है जिससे अवशेष हवा में उड़ते है। इन फैक्ट्री से फैलने वाले प्रदूषण का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि खड़ी फसलों के पत्तों पर काले रंग की परत जम जाती है जिससे फसल नष्ट हो रही है। कई बार मामले की शिकायत प्रदूषण विभाग व प्रशासनिक अधिकारियों से करने के बावजूद संचालकों पर कार्यवाही नहीं की जा रही। मोबिल ऑयल बनाने में होता प्रयोग जानकारों की माने तो टायरों को जलाए जाने के बाद उसमें से निकलने वाला तेल व बुरादा की बाजार में बेहतर कीमत मिलती है। सूत्रों का कहना है कि टायरों से निकाले जाने वाले तेल का प्रयोग मोबिल ऑयल बनाने वाली कंपनियों द्वारा मिलावटखोरी के लिए किया जाता है। इस तेल की सप्लाई गुजरात, राजस्थान, बाड़मेर, जयपुर, जोधपुर आदि स्थानों पर टैंकरो के जरिए भेजा जाता है। वहीं राख का प्रयोग सीमेंट में मिलावट करने में की जाती है। जिससे इसकी कीमत भी अधिक होती है। कागजों तक सीमित रहते है नियम टायर फैक्ट्रियों को प्रदूषण विभाग से एनओसी लेते समय बताए जाने वाले नियम महज कागजों तक सीमित है। पानी को दूषित करने वाले ऐसे प्लांटों में इनफ्लुएंस ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) लेकिन आने वाले खर्च को बचाए जाने केलिए प्लांट नहीं लगवाया जाता। जिससे फैक्ट्रियों से निकलने वाला प्रदूषित पानी खेतों तक पहुंचकर वहां की मिट्टी को खराब कर रहा है जिससे फसलें भी नष्ट हो रही है। वहीं नियमानुसार प्रदूषण को कम करने को गैस को भी कंट्रोल करना होता है। टायर फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआं फैला रहा प्रदूषण, विभिन्न गंभीर बीमारियों की जद में आ रहे क्षेत्रीय लोग, जिम्मेदार नहीं दे रहे हो रही समस्याओं पर ध्यान अधिकारियों की मिली भगत से संचालित होने टायर फैक्ट्री से ग्रामीण क्षेत्रों की हवा को दूषित होने से तत्काल प्रभाव से रोक लगानी चाहिए। कार्यवाही नहीं की जाती तो मामले को सदन में उठाया जाएगा । -राजेंद्र सिंह पटेल, विधायक जहानाबाद

दीपावली दियों से या धमाकों से? अबकि दीवाली पर हमें यह सोचना ही होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि हमारे शहरों की हवा हमारे इस उत्साह को शायद और नहीं झेल पा रही है। हवा इतनी खराब है कि सांस लेना भी मुश्किल हो रहा है। भारत की राजधानी दिल्ली इस मामले में कुछ ज्यादा बदनाम है। दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित जगहों में शामिल दिल्ली में प्रदूषण इतना अधिक है कि लोगों का रहना भी यहां दूभर हो रहा है।