गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा मे लोहड़ी का पर्व धूमधाम से मनाया गया। गुरुद्वारा के बाहर लोहड़ी की होलिका जलाकर खुशियां मनाई गई। अग्नि में गुड़, मूंगफली, रेवड़ी, गजक, पॉपकॉर्न आदि अर्पित किए गए। लोहड़ी का पर्व मकर संक्रांति के एक दिन पहले मनाया जाता है। इस पर्व पर शाम के समय लोग तैयार होकर एक जगह इकट्ठा होते हैं। फिर आग जलाई जाती है और उसके इर्द-गिर्द डांस किया जाता है। साथ ही आग के आस-पास घेरा बनाकर दुल्ला भट्टी की कहानी भी सुनी जाती है। लोहड़ी पर दुल्ला भट्टी की कहानी सुनने का खास महत्व होता है। इसके अलावा इस दिन आग के चारों ओर नाच गाना करते हैं। इस दौरान सुंदर मुंदलिए करके एक गाना भी गाया जाता है। साथ ही लोहड़ी के दिन घर की सुख-शांति और समृद्धि के लिए प्रार्थना भी की जाती है। मुख्य ग्रंथी ज्ञानी गुरुवचन जी ने बताया कि लोहड़ी पौष माह की अंतिम रात को एव मकर संक्राति की सुबह तक मनाया जाता हैं। पंजाब प्रान्त के मुख्य त्योहारों में से एक है। जिन्हें पंजाबी बड़े जोरो शोरो से मनाते हैं। लोहड़ी की धूम कई दिनों पहले से ही शुरू हो जाती हैं। मुख्यतः यह त्योहार सभी आपस मिल जुलकर मनाये जाते हैं। लोहड़ी के पीछे एक ऐतिहासिक कथा भी हैं। जिसे दुल्ला भट्टी के नाम से जाना जाता हैं। यह कथा अकबर के शासनकाल की हैं। उन दिनों दुल्ला भट्टी को पंजाब का नायक कहा जाता था। उन दिनों संदलबार नामक एक जगह थी। जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है। वहां लड़कियों की बाजारी होती थी। तब दुल्ला भट्टी ने इस का विरोध किया और लड़कियों को सम्मानपूर्वक बचाया। उनकी शादी करवाकर उन्हें सम्मानित जीवन दिया। इस विजय के दिन को लोहड़ी के गीतों में गाया जाता हैं और दुल्ला भट्टी को याद किया जाता हैं। इन्ही पौराणिक और एतिहासिक कारणों के चलते भारत देश में लोहड़ी का उत्सव उल्लास के साथ मनाया जाता हैं। इस अवसर पर गुरूद्वारा सिंह सभा प्रधान चरनजीत सिंह, जतिंदर पाल सिंह, नरिंदर सिंह रिक्की, गोविंद सिंह, कुलजीत सिंह, नरेंद्र सिंह रिंकू, गुरमीत सिंह, बंटी, सोनी व महिलाओं हरविंदर कौर, मंजीत कौर, हरजीत कौर, जसवीर कौर, हरमीत कौर, प्रभजीत कौर, गुरशरण कौर, ईशर कौर, रीता, इंदरजीत कौर, जसप्रीत कौर, तरनजीत कौर, नीना, खुशी, वीर सिंह, प्रभजस आदि भक्त जन उपस्थित रहे।