फतेहपुर/खागा,। जल ही जीवन जल सा जीवन, जल्दी ही जल जाओगे, अगर बची नहीं जल की बूंदें, कैसे प्यास बुझाओगे... किसी कवि की लिखी यह चंद लाइनें लोगों की समझ में आती नहीं दिख रही हैं क्योंकि जिले में पानी की बर्बादी का आलम थम नहीं रहा है। अपनी जेबें भरने के लिए पानी के कारोबारी रोज लाखों लीटर पानी नालियों में बहा रहे हैं। कई सालों से जिले में पानी बेचने का धंधा जोर पकड़ रहा है। एक के बाद एक दर्जनों आरओ वाटर प्लान्टों के जरिए रोजाना धरती की कोख से अरबों लीटर पानी निकाला जा रहा है। जिससे जनपद में पहले से ही गिर रहे भूजल स्तर को और अधिक खतरा पैदा हो गया है। सूत्र बताते हैं कि आरओ वाटर प्लान्टों को लगाने के पहले न तो जल संरक्षण की मानक अनुसार व्यवस्था की गई और न ही नियमों व दूसरे मानकों का पालन किया गया। घर घर पानी की सप्लाई कर कारोबारी अपनी माली हालत तो दुरूस्त कर रहे हैं लेकिन पर्यावरण को गंभीर बीमारी दे रहे हैं। तीनों तहसीलों में स्थापित किए गए वाटर प्लांटों से रोजाना करोड़ों लीटर पानी जल संरक्षण की उचित व्यवस्था नहीं होने से नालियों में बह रहा है। 70 फीसदी सिंचाई भूगर्भ जल पर निर्भर सूबे के दूसरे जिलों की तरह फतेहपुर में भी सिचाई के साधनों में भूगर्भ जल का अत्यधिक महत्व है। अनुमान के मुताबिक करीब सत्तर फीसदी सिचाई भूगर्भ जल साधनों द्वारा की जाती है। नहरी में पानी की कमी और नहर आच्छादित क्षेत्रों की कमी के कारण खेतों की सिचाई के लिए निजी और सरकारी नलकूपों पर अधिक निर्भरता है। मानसूनी बारिश कम होने पर यह निर्भरता काफी अधिक बढ़ जाती है। पेयजल व्यवस्था तो सौ फीसदी भूगर्भ जल पर ही निर्भर है। कम लागत में होती अधिक कमाई, बढ़ रहे प्लांट आरओ वाटर प्लांटों की संख्या में बढ़ोतरी का कारण कम पूंजी में अधिक कमाई को माना जा रहा है। दो हजार लीटर से दस हजार लीटर तक के वाटर प्लांट करीब पांच लाख से पंद्रह लाख तक की पूंजी में स्थापित किए जा सकते हैं। इन प्लान्टों में पूंजी का एक बार निवेश करने के बाद रखरखाव और मरम्मत की अधिक आवश्यकता नहीं होती है।