फतेहपुर, । कैफे संचालक की हत्या बाद बवाल में खाकी पर उठे सवाल यूं नहीं है। सालों से थाने में जमे कुछ पुलिस कर्मियों की पेशबंदी अहम रही। स्थानीय राजनेताओं से प्रेम और स्थानीय राजनीति से प्रेरित होने के कारण महकमें पर ऐसे दाग लगे जिसे धुल पाना फिलहाल मुश्किल है। यह अकेले औंग का मामला नहीं है। अधिकतर थानों में पुलिस कर्मी सालों से कुंडली मारे बैठे हैं। जो विभागीय की किरकिरी कराने की वजह बने है। पुलिस सूत्रों की मानें तो औंग थाने में एक सिपाही छह साल से थाने में तैनात है। थानेदार के खास और आम को लेकर थाने के पुलिस कर्मी दो गुटों में बंटे हुए है। सालों के जमे सिपाही का क्षेत्र में पूरा नेटवर्क है। कइयों से याराना भी.,थाने के हर छोटे बड़े काम में दखल भी। हर शिकायत पर प्रतिवादी से फोन पर संपर्क करना जैसी बातें साथी कर्मियों को नागवार लग रही थी.. नतीजन घटना को हथियार बना कर साहब को पैदल करने को लेकर महकमें की किरकिरी करा दी। पुलिस सूत्रों की मानें तो जिले में अधिकांश थानों में कई ऐसे हेड मुर्हरिर, हेड कांस्टेबल और कांस्टेबल हैं जो लंबे समय से डटे हैं। क्षेत्र की जानकारी होने की वजह से यह इंस्पेक्टर और चौकी इंचार्ज के जल्दी ही खास हो जाते हैं। इंस्पेक्टर और चौकी इंचार्ज भी काफी हद तक उन पर निर्भर होते हैं। इनके कहने में दारोगा रिपोर्ट लगाते हैं तो कहीं खुद सिपाही ही दारोगा का रोल अदा कर रहे है। हालात यह हैं कि कई सिपाही और मुंशी ही पूरा थाना और चौकी चला रहे हैं। सालों से एक ही जगह तैनात सूत्रों की मानें तो किशनपुर थाने में तैनात 2005 बैच का एक सिपाही 19 साल से जिले में ही तैनात है। बताते है कि कई बार गैरजनपद तबादला हुआ है लेकिन हर बार जुगाड़ से रूक जाता है। ऐसे ही औंग थाने में एक पुलिस कर्मी पिछले कई सालों से थरियांव और सदर कोतवाली में करीब साढ़े तीन साल से, ललौली, हथगाम और खागा कोतवाली सहित कई थानों में सालों से जुगाड़ के दम पर पुलिस कर्मी जमे हैं।