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भारत में शादी के मौकों पर लेन-देन यानी दहेज की प्रथा आदिकाल से चली आ रही है. पहले यह वधू पक्ष की सहमति से उपहार के तौर पर दिया जाता था। लेकिन हाल के वर्षों में यह एक सौदा और शादी की अनिवार्य शर्त बन गया है। विश्व बैंक की अर्थशास्त्री एस अनुकृति, निशीथ प्रकाश और सुंगोह क्वोन की टीम ने 1960 से लेकर 2008 के दौरान ग्रामीण इलाके में हुई 40 हजार शादियों के अध्ययन में पाया कि 95 फीसदी शादियों में दहेज दिया गया. बावजूद इसके कि वर्ष 1961 से ही भारत में दहेज को गैर-कानूनी घोषित किया जा चुका है. यह शोध भारत के 17 राज्यों पर आधारित है. इसमें ग्रामीण भारत पर ही ध्यान केंद्रित किया गया है जहां भारत की बहुसंख्यक आबादी रहती है.दोस्तों आप हमें बताइए कि *----- दहेज प्रथा को लेकर आप क्या सोचते है ? और इसकी मुख्य वजह क्या है ? *----- समाज में दहेज़ प्रथा रोकने को लेकर हमें किस तरह के प्रयास करने की ज़रूरत है ? *----- और क्यों आज भी हमारे समाज में दहेज़ जैसी कुप्रथा मौजूद है ?

चुनावी बॉंड में ऐसा क्या है जिसकी रिपोर्ट सार्वजनिक होने से बचाने के लिए पूरी जी जान से लगी हुई है। सुप्रीम कोर्ट की डांट फटकार और कड़े रुख के बाद बैंक ने यह रिपोर्ट चुनाव आयोग को सौंप दी, अब चुनाव आयोग की बारी है कि वह इसे दी गई 15 मार्च की तारीख तक अपनी बेवसाइट पर प्रकाशित करे।

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माकपा के जिला मंत्री और राष्ट्रीय समिति के सदस्य कॉमरेड जयप्रकाश यादव की अध्यक्षता में आयोजित बैठक को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मोदी - योगी की डबल इंजन सरकार में बेरोजगारी , मुद्रास्फीति और किसानों की समस्याएं बदतर हो गई हैं । कानून को निरस्त करने और छात्र युवाओं में आत्महत्याओं की बढ़ती संख्या , महिलाओं में असुरक्षा की बढ़ती भावनाओं ने एक विकसित भारत बनाने के भाजपा सरकार के झूठे वादे को उजागर कर दिया है । कॉफी इंडिया द्वारा उच्चतम न्यायालय के आदेश की अवज्ञा यह साबित करती है कि मोदी योगी के राज्य में कहीं भी न्याय नहीं मिलता है । वर्ष दो हजार चौदह में करोड़ों युवाओं को नौकरी देने का मोदी का वादा झूठा साबित हुआ । विदेश से 15 लाख रुपये का काला धन लाने और हर जन धन खाते में जमा करने का वादा किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किसानों को कर्ज मुक्त और समृद्ध बनाने का वादा बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ महिलाओं की सुरक्षा आदि । वादे सिर्फ जुमले साबित हुए हैं , किसान आंदोलन आज भी समझौते का पालन नहीं करना चाहता और किसानों से किए जा रहे झूठे वादे भाजपा सरकार की नियति बन गए हैं । अब लोकतांत्रिक अधिकारों पर भी हमला किया जा रहा है । केंद्र सरकार के ऐसे बजट रहे हैं जिनसे मुद्रास्फीति और बेरोजगारी बढ़ी है और कुछ चुनिंदा लोगों को लाभ हुआ है , और श्रीराम को समर्पित सरकार का बजट किसानों , मजदूरों , खेत मजदूरों और युवाओं का बजट रहा है । इसमें गरीबों के लिए कोई प्रावधान नहीं है , भाजपा दो हजार चौबीस के लोकसभा चुनाव को केवल रामजी के आधार पर अपने पक्ष में करना चाहती है , इसलिए आम लोगों को सावधान और जागरूक होने की जरूरत है । दो हजार चौबीस की लड़ाई केवल सरकार है । यह चुनाव बनाने या हारने के लिए नहीं है , यह चुनाव बाबासाहेब डॉ . भीमराव अम्बेडकर के संविधान को बचाने के लिए है , लोकतंत्र को बचाने के लिए है , हमारी कृषि को बचाने के लिए है , हमारी नौकरियों को बचाने के लिए है , हमारी शिक्षा को बचाने के लिए है , हमारे स्वास्थ्य को बचाने के लिए है , हमारी भूमि को बचाने के लिए है । एकता की संस्कृत विविधता में एकता की संस्कृत बनाने का विकल्प है , इसलिए आगामी लोकसभा चुनावों में इस देश के लिए , इस देश के 14 करोड़ लोगों के भविष्य के लिए भक्त । सिंह राजगुरु सुखदेव हकुल्लाह रामप्रसाद बिश्मील आजाद की विरासत को अक्षुण्ण रखने के लिए भाजपा को हराना बहुत जरूरी है । 30 मार्च तक पार्टी के सभी सदस्यों का नवीनीकरण , 23 मार्च को सिक्तिया और बांगड़ा में भगत सिंह का शहादत दिवस समारोह आयोजित करना और 12 मार्च को वाम दलों के साथ चुनावी बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को उलटना ।

राजेश सिंह दयाल ने लगातार मुफ्त स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन किया था और उनका संगठन अभी भी समाज सेवा के पूरे क्षेत्र में काम कर रहा है । आपको बता दें कि भारतीय जनता पार्टी द्वारा लोकसभा चुनाव में टिकट न दिए जाने से राजेश सिंह दयाल के समर्थकों और उनके द्वारा बनाए गए शिविर में लाभार्थियों में काफी नाराजगी और गुस्सा पैदा हो गया था । सलेमपुर क्षेत्र में राजेश सिंह दयाल के आवास पर रविवार को किसी भी पार्टी से चुनाव लड़ने के प्रस्ताव के साथ लोगों की भीड़ जमा हो गई और हजारों लोग आगामी चुनावों में सलेमपुर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए उनके आवास पर एकत्र हुए ।

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उत्तरप्रदेश राज्य के देओरीया जिले के नगर के मठ वार्ड में चारों तरफ गंदगी फैली है।

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दोस्तों, यह साल 2024 है। देश और विश्व आगे बढ़ रहा है। चुनावी साल है। नेता बदले जा रहे है , विधायक बदले जा रहे है यहाँ तक की सरकारी अधिकारी एसपी और डीएम भी बदले जा रहे है। बहुत कुछ बदल गया है सबकी जिंदगियों में, लेकिन महिलाओं की सुरक्षा आज भी एक बड़ा सवाल बना हुआ है। देश की सरकार तो एक तरफ महिला सशक्तिकरण का दावा करती आ रही है, लेकिन हमारे घर में और हमारे आसपास में रहने वाली महिलाएँ आखिर कितनी सुरक्षित हैं? आप हमें बताइए कि *---- समाज में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर हमें किस तरह के प्रयास करने की ज़रूरत है ? *---- महिलाओं को सही आज़ादी किस मायनों में मिलेगी ? *---- और घरेलू हिंसा को रोकने के लिए हमें क्या करना चाहिए ?