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आगामी लोकसभा चुनाव के मध्य नजर सपा यों की हुई बैठक

उप जिला निर्वाचन अधिकारी व एडीएम प्रशासन गौरव श्रीवास्तव ने बताया कि मतदाता सूची का प्रकाशन 22 जनवरी को होगा इससे पहले यह डेट 5 जनवरी को थी।

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पिछले कुछ सालों से देश में एक नया शिगूफा छिड़ा हुआ है, एक देश एक चुनाव का, गाहे-बगाहे इसको लेकर चर्चा उठती रहती है। बीते महीने संसद के विशेष सत्र में भी इसको लेकर चर्चा उठी थी। एक देश एक चुनाव के कराने के पीछे सरकार का तर्क है कि इससे देश के संसाधनों की बचत होगी।

लोकतंत्र का उत्सव इन चुनावों ने राजनेताओं और जनता को बहुत से सबक दिये हैं। ऐसे सबक जो केवल चुनावी राजनीति में नहीं बल्कि जीवन के हर पहलू में हमें सीखना जरूरी सा है। ये सबक आज के आज़ाद भारत के समाज को समझने के लिए बेहद जरूरी हैं।

चुनावी माहौल में हिंसा, बहुत पुरानी बात नहीं है, बिना हिंसा के शायद ही कोई चुनाव होता हो, बंगाल इस मामले में सबसे आगे है, जहां पंचायत से लेकर सांसद तक के चुनाव बिना हिंसा के पूरे नहीं होते, यहां राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ता अपने विरोधी दलों के कार्यकर्ताओं को मरने मारने पर उतारु रहते हैं।

कोई अपना उम्मीदवार कैसे चुनता है यह कोई रहस्यमयी प्रक्रिया है जिसके बारे में हम कुछ नहीं जानते ! भारत का मतदाता अक्सर चुनाव विश्लेषकों और एक्जिट पोल वालों को चकित करता आया है । क्या चुनाव में प्रेम जैसा कुछ अबूझ है जिसके चलते कई बार प्रेमी प्रेमिका की तरह ही उम्मीदवार को भी पता नहीं होता उसे क्यों चुन लिया गया !

‘नागरिकों को राजनीतिक दलों के चंदे का स्रोत जानने का अधिकार नहीं है’ सरकार की तरफ से पेश हुए उसके वकील यानी सॉलीसिटर जनरल आर. रमन्नी ने यह बात सुप्रीम कोर्ट में कही है’। सवाल उठता है कि जब सबकुछ ठीक है तो फिर चंदे से जुड़ी जानकारी जनता से साझा करने में दिकक्त क्या है? राजनीतिक शुचिता और भ्रष्टाचार पर वार करने वाले राजनीतिक दल की सरकार अगर कहे कि वह जनता को नहीं बता सकती की उसकी पार्टी को चंदा देने वाले लोग कौन हैं, तो फिर इसको क्या समझा जाए।