उत्तरप्रदेश राज्य के अमेठी ज़िला से एमपी मिश्रा ,मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते है कि माध्यमिक विद्यालयों की स्थिति में सुधार के लिए लाखों करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं । लेकिन विद्यालयों की स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है। सबसे खराब स्थिति उन स्कूलों की है जो सड़क के किनारे हैं और जिनमें बाड़ नहीं लगाई गई है और जब दोपहर का भोजन होता है तो बच्चे बाहर होते हैं ।क्षेत्र में लगभग सत्रह ऐसे स्कूल हैं । जिन लोगों की चारदीवारी का निर्माण नहीं किया गया है

उत्तरप्रदेश राज्य के जिला अमेठी से एम पी मिश्रा , मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहते है कि घरेलू हिंसा समाज केलिए एक कंलक है। कई महिलाएं घरेलु हिंसा का शिकार होती है। वह सामाजिक भेद भाव के कारण वह कानून का सहारा भी नहीं ले पाती है। घरेलु हिंसा को रोकने के लिए हमें शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए। दहेज़ के कारण ससुराल में महिलाओं के साथ हिंसा होती है।अगर संतान नहीं हो रही है तो इसके कारण भी महिलाओं को ससुराल में प्रताड़ित किया जाता है। अगर हिंसा से मुक्ति पाना है तो शिक्षा और रोजगार पर ध्यान देना चाहिए। महिलाओं को हिंसा से बचने के लिए कानून का सहारा लेना चाहिए

उत्तरप्रदेश राज्य के अमेठी ज़िला से प्रवीण यादव ,मोबाइल वाणी के माध्यम से समाजसेवी गुंजन सिंह से बात हो रही है। ये कहती है कि ससुराल में महिलाओं को बहुत दिक्कत होता है। सास और बहु का रिश्ता अच्छा नहीं होने से हिंसा बढ़ता है। इस मामले में एक बहु को सास को सम्मान और माँ के सामान दर्जा देना चाहिए साथ ही सास को भी बहु के प्रति सजग रहना होगा और बेटी के रूप में दर्जा दें। सास - बहु का सम्बन्ध अच्छा होगा और आपसी सामंजस्य बना कर रखने से महिला हिंसा रुकेगी

उत्तरप्रदेश राज्य के अमेठी ज़िला से प्रवीण यादव ,मोबाइल वाणी के माध्यम से अधिवक्ता उषा यादव से बात हो रही है। ये कहती है कि शिक्षा के अभाव के कारण महिला हिंसा की शिकार हो रही है। अगर महिलाएं शिक्षित हो जाएगी तो घरेलु हिंसा से बच जाएगी। साथ ही नशीले पदार्थ में रोक लगानी ज़रूरी है। क्योंकि नशा घर में हिंसा ले कर आता है। नशा मुक्ति होना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा शिक्षा का प्रचार हो ,ताकि महिलाएँ घरेलु हिंसा से बच सके। महिलाएं जो भी कोर्ट आती है ,उन्हें मदद मिलती है। महिलाओं के लिए महिला आयोग और कई ऐसे पोर्टल है जो महिलाओं की मदद करते है

घरेलू हिंसा सभ्य समाज का एक कड़वा सच है।आज भले ही महिला आयोग की वेबसाइट पर आंकड़े कुछ भी हो जबकि वास्तविकता में महिलाओं पर होने वाली घरेलु हिंसा की संख्या कई गुना अधिक है। अगर कुछ महिलाएँ आवाज़़ उठाती भी हैं तो कई बार पुलिस ऐसे मामलों को पंजीकृत करने में टालमटोल करती है क्योंकि पुलिस को भी लगता है कि पति द्वारा कभी गुस्से में पत्नी की पिटाई कर देना या पिता और भाई द्वारा घर की महिलाओं को नियंत्रित करना एक सामान्य सी बात है। और घर टूटने की वजह से और समाज के डर से बहुत सारी महिलाएं घरेलु हिंसा की शिकायत दर्ज नहीं करतीं। उन्हें ऐसा करने के लिए जो सपोर्ट सिस्टम चाहिए वह हमारी सरकार और हमारी न्याय व्यवस्था अभी तक बना नहीं पाई है।बाकि वो बात अलग है कि हम महिलाओं को पूजते ही आए है और उन्हें महान बनाने का पाठ दूसरों को सुनाते आ रहे है। आप हमें बताएं कि *-----महिलाओं के साथ वाली घरेलू हिंसा का मूल कारण क्या है ? *-----घरेलू हिंसा को रोकने के लिए हमें अपने स्तर पर क्या करना चाहिए? *-----और आपने अपने आसपास घरेलू हिंसा होती देखी तो क्या किया?

उत्तरप्रदेश राज्य के अमेठी ज़िला से एमपी मिश्रा ,मोबाइल वाणी के माध्यम से रणजीत सिंह से बात हो रही है। ये कहते है कि पहले के युग में बैलेट पेपर से चुनाव होता था। पहले गुंडई ज़्यादा होती थी। जब से ईवीएम आया ये सारी समस्याओं का समाधान हो गया। वही मनसा राम कहते है कि बैलेट पेपर की अपेक्षा ईवीएम ज्यादा सस्ती ,सुविधाजनक और मतदाताओं के लिए सुलभ है। हरिकेश के अनुसार भी ईवीएम से सुविधा अच्छी होती है और बूथ कैप्चरिंग की गुंजाईश नहीं होती है

2016 में 14% छात्र औपचारिक शिक्षा से बाहर थे जो कि देश में 2023 में भयानक सुधार होने के बाद भी अब मात्र 13.2 फीसद बाहर हैं ... 2016 में 23.4 फीसद अपनी भाषा में कक्षा 2 का पाठ नहीं पढ़ पाते थे आज 2023 में अति भयानक सुधार के साथ ये आंकड़ा 26.4 प्रतिशत है ... देश के आज भी 50 फीसद छात्र गणित से जूझ रहे हैं ... मात्र 8 साल में गणित में हालात बद से बदतर हो गए ... 42.7% अंग्रेजी में वाक्य नहीं पढ़ सकते हैं... अगर आप सरकार से जवाब माँगिए , तो वे कहती है कि वो लगातार बैठकें कर रहे हैं लेकिन असर की रिपोर्ट बताती है कि ये बैठकें कितनी बेअसर हैं... तो विश्व गुरु बनने तक हमें बताइये कि *-----आपके गांव या जिला के स्कूलों की स्थिति क्या है ? *-----वहां पर आपके बच्चों को या अन्य बच्चों को किस तरह की शिक्षा मिल रही है ? *-----और आपके गाँव के स्कूलों में स्कुल के भवन , बच्चों की पढ़ाई और शिक्षक और शिक्षिका की स्थिति क्या है ?

हमारे देश में सभी को शिक्षा का अधिकार है लेकिन लड़कियों को इसके लिए कहीं अधिक संघर्ष करना पड़ता है। कई बार घर के काम के बोझ के साथ स्कूल के बस्ते का बोझ उठाना पड़ता है तो कभी लोगों की गंदी नज़रों से बच-बचा के स्कूल का सफर तय करना पड़ता है। जैसे-तैसे स्कूल पहुंचने के बाद भी यौन शोषण और भावनात्मक शोषण की अलग चुनौती है जो रोज़ाना उनके धैर्य और हिम्मत की परीक्षा लेती है। ऐसे में लड़कियों के लिए सुरक्षित माहौल बनाने की जिम्मेदारी शासन-प्रशासन के साथ साथ समाज की भी है। तब तक आप हमें बताइए कि * -----लड़कियों के स्कुल छोड़ने के या पढ़ाई पूरी ना कर पाने के आपको और क्या कारण नज़र आते है ? * -----आपके हिसाब से हमें सामाजिक रूप से क्या क्या बदलाव करने की ज़रूरत है , जिससे लड़कियों की शिक्षा अधूरी न रह पाए।

लड़कियों के सपने सच में पुरे हो , इसके लिए हमें बहुत सारे समाजिक बदलाव करने की ज़रूरत है। और सबसे ज्यादा जो बदलाव की ज़रूरत है, वो है खुद की सोच को बदलने की। शिक्षा महिलाओं की स्थिति में बड़ा परिवर्तन ला सकती है लेकिन शिक्षा को लैंगिक रूप से संवेदनशील होने की जरूरत है। गरीब और वंचित समूह के बच्चों को जीवन में शिक्षा में पहले ही सीमित अवसर मिलते हैं उनमें से लड़कियों के लिए और भी कम अवसर मिलते हैं, समान अवसर तो दूर की बात है। सरकारी स्तर पर जितने ही प्रयास किये जा रहे हों, यदि हम समाज के लोग इसके लिए मुखर नहीं होंगे , तब तक ऐसी भयावह रिपोर्टों के आने का सिलसिला जारी रहेगा और सही शौचालय न होने के कारण छात्राओं को मजबूरी में स्कूल छोड़ने का दर्द सताता रहेगा। तब तक आप हमें बताएं कि *----- आपके गांव में सरकारी स्कूल में शौचालय है, और क्या उसकी स्थिति कैसी है? *----- क्या आपको भी लगता है कि सरकारी स्कूल में शौचालय नहीं होने से लड़कियों की शिक्षा से बाहर होने का बड़ा कारण है *----- शौचालय होने और ना होने से लड़कियों की शिक्षा किस प्रकार प्रभावित हो सकती है?

सरकार हर बार लड़कियों को शिक्षा में प्रोत्साहित करने के लिए अलग-अलग योजनाएं लाती है, लेकिन सच्चाई यही है कि इन योजनाओं से बड़ी संख्या में लड़कियां दूर रह जाती हैं। कई बार लड़कियाँ इस प्रोत्साहन से स्कूल की दहलीज़ तक तो पहुंच जाती है लेकिन पढ़ाई पूरी कर पाना उनके लिए किसी जंग से कम नहीं होती क्योंकि लड़कियों को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने और पढ़ाई करने के लिए खुद अपनी ज़िम्मेदारी लेनी पड़ती है। लड़कियों के सपनों के बीच बहुत सारी मुश्किलें है जो सामाजिक- सांस्कृतिक ,आर्थिक एवं अन्य कारकों से बहुत गहरे से जुड़ा हुआ हैं . लेकिन जब हम गाँव की लड़कियों और साथ ही, जब जातिगत विश्लेषण करेंगें तो ग्रामीण क्षेत्रों की दलित-मज़दूर परिवारों से आने वाली लड़कियों की भागीदारी न के बराबर पाएंगे। तब तक आप हमें बताइए कि * -------आपके गाँव में या समाज में लड़कियों की शिक्षा की स्थिति क्या है ? * -------क्या सच में हमारे देश की लड़कियाँ पढ़ाई के मामले में आजाद है या अभी भी आजादी लेने की होड़ बाकी है ? * -------साथ ही लड़कियाँ को आगे पढ़ाने और उन्हें बढ़ाने को लेकर हमे किस तरह के प्रयास करने की ज़रूरत है ?