किसी भी समाज को बदलने का सबसे आसान तरीका है कि राजनीति को बदला जाए, मानव भारत जैसे देश में जहां आज भी महिलाओं को घर और परिवार संभालने की प्रमुख इकाई के तौर पर देखा जाता है, वहां यह सवाल कम से कम एक सदी आगे का है। हक और अधिकारों की लड़ाई समय, देश, काल और परिस्थितियों से इतर होती है? ऐसे में इस एक सवाल के सहारे इस पर वोट मांगना बड़ा और साहसिक लेकिन जरूरी सवाल है, क्योंकि देश की आबादी में आधा हिस्सा महिलाओं का है। इस मसले पर बहनबॉक्स की तान्याराणा ने कई महिलाओँ से बात की जिसमें से एक महिला ने तान्या को बताया कि कामकाजी माँओं के रूप में, उन्हें खाली जगह की भी ज़रूरत महसूस होती है पर अब उन्हें वह समय नहीं मिलता है. महिलाओं को उनके काम का हिस्सा देने और उन्हें उनकी पहचान देने के मसले पर आप क्या सोचते हैं? इस विषय पर राय रिकॉर्ड करें
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पक्ष विपक्ष कड़ी संख्या - 42 उद्योगपतियों का मुनाफा बढ़ती दुनिया की गरीबी बड़े-बड़े उद्योगपतियों के द्वारा लगाए गए उद्योग में कितने गरीब लोगों को कम मिलता है और उनके काम का सही दाम मिलता है आप जान रहे हैं इस कड़ी में हम लोग बात करेंगे उद्योगपतियों और गरीबी के बीच में असमानता जो भारत में बहुत तेजी से बढ़ रहा है और इसका निदान किस प्रकार किया जाए आप हमें कमेंट में जरूर बताएं जैसा कि आप जानते हैं भारत में पूरे राज्य में हर जगह असमानता बढ़ते जा रहा है और इसको किस तरह से रोका जा सकता है और इसका पहला कौन करेगा इस कड़ी में हम लोग बात करने जा रहे हैं तो आप बक्सर मोबाइल बनी के जरिए सारी बातें आप सुन पाएंगे और टोल फ्री नंबर 9 266618444 पर कॉल कर बक्सर मोबाइल लाने की खबरें सुन सकते हैं धन्यवाद
हाल ही में एक रिपोर्ट के अनुसार बीस तीन सालों में दुनिया के पांच बड़े व्यापारियों की संपत्ति में दोगुने से ज्यादा का इजाफा हुआ है, जिस समय इन अमीरों की दौलत में इजाफा हो रहा था, ठीक उसी समय पांच मिलियन लोग गरीब से और ज्यादा गरीब हो रहे थे। इससे ज्यादा मजे की बात यह है कि हाल ही में दावोस में हुई वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम की बैठक में शीर्ष पांच उद्योगपतियों ने एक नई रणनीति पर चर्चा और गठबंधन किया।
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दोस्तों, दुनिया भर में काम के घंटे घटाए जाने की मांग बढ़ जा रही है, दूसरी तरफ भारत काम के घंटों को बढ़ाए जाने की सलाह दी जा रही है। भारत में ज्यादातर संस्थान छ दिन काम के आधार पर चलते हैं, जिनमें औसतन 8-9 घंटे काम होता है, उस हिसाब से यहां औसतन पैंतालिस घंटे काम किया जाता है। जबकि दुनिया की बाकी देशों में काम के घंटे कम हैं, युरोपीय देशों में फ्रांस में औसतन 35 घंटे काम किया जाता है, ऑस्ट्रेलिया में 38 घंटे औसतन साढ़े सात घंटे काम किया जाता है, अमेरिका में 40 घंटे, ब्रिटेन में 48 घंटे और सबसे कम नीदरलैंड में 29 घंटे काम किया जाता है। दोस्तों, बढ़े हुए काम घंटों की सलाह देना आखिर किस सोच को बताता है, जबकि कर्मचारियों के काम से बढ़े कंपनी के मुनाफे में उसका हक न के बराबर या फिर बिल्कुल नहीं है? ऐसे में हर बात पर देशहित को लाना और उसके नाम पर ज्यादा काम की सलाह देना कितना वाजिब है? इस मसले पर अपना राय को मोबाईल वाणी पर रिकॉर्ड करें और बताएं कि आप इस मसले पर क्या सोचते हैं, आप भले ही मुद्दे के पक्ष में हों या विपक्ष में, इसे रिकॉर्ड करने के लिए दबाएं अपने फोन से तीन नंबर का बटन
दोस्तो, आज अंतरराष्ट्रीय समान वेतन दिवस है... यह दिन खासतौर पर उन महिलाओं को समर्पित है... जो काम तो पुरुषों के बराबर करती हैं पर जब वेतन की बात आती है तो उन्हें कम आंका जाता है... क्या आप भी ऐसी परिस्थितियों से गुजरे हैं? इस खास दिन पर आपके क्या विचार है.. फोन में नम्बर 3 दबाकर रिकॉर्ड करें.