दोस्तों पांच दिन के इस विशेष सत्र में ऐसा बहुत कुछ हुआ जो संसदीय परंपरा और लोकतंत्र के हिसाब से बिल्कुल भी नहीं है और आभास देता है कि देश सरकारी एकाधिकार की तरफ बढ़ रहा है। ऐसा मानने के वाजिब कारण भी हैं, कारण यह हैं कि अगस्त महीने की आखिरी तारीख को जब घोषणा की गई सरकार पांच दिनों का विशेष सत्र आयोजित करेगी, तब इसका उद्देश्य नहीं बताया गया था, बहुत बाद में जब विपक्ष ने कई बार इसकी मांग की तब सरकार ने दबाव में आकर कहा कि कुछ जरूरी है काम हैं, जिन्हें पूरा किया जाना आवश्यक है, इसके साथ ही सरकार ने उन पांच विषयों की सूची जारी कि जिन पर संसद में काम होना था, लेकिन जब संसद बैठी तो दी गई जानकारी के अनुसार कोई काम नहीं हुआ और पांच दिन के सत्र के दो दिन पुरानी संसद से विदाई और नई संसद के शुभारंभ समारोह में निकल गए, उसके बाद का बचा समय महिला आरक्षण बिल को पेश करने और उसको पास कराने में निकल गया। उसके बाद बचा एक दिन के समय के लिए संसद को स्थगित कर दिया गया। -------दोस्तों आपको क्या लगता है नई संसद भवन के उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति को न बुलाने का क्या कारण हो सकता है, कहीं यह राष्ट्रपति की भूमिका को कम करने का प्रयास तो नहीं? ----------या फिर संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को पार्टी का कार्यकर्ता मानना उस पद का अपमान तो नहीं। -----------या फिर सरकार द्वारा इस तरह से सूचनाओं को छिपाना और एजेंडे के विपरीत काम करना लोकतंत्र, संसद और उसकी प्रक्रियाओं को कमजोर करने का प्रयास तो नहीं। ------------जो भी हो आप इस मसले पर क्या सोचते हैं, सरकार द्वारा इस तरह का व्यवहार कितना उचित है, लोकतंत्र में हर नागरिक का बोलना जरूरी है, अपनी बात रखना जरूरी है।

गठबंधन द्वारा बैन किये जाने के बाद के सबसे पहला विरोध इन एंकरों की तरफ से आया ‘जिन्होंने नाखून कटाकर शहीद होने की घोषणा कर दी’, खुद पर लगाए बैन को आपातकाल घोषित कर पत्रकारिता पर हमला तक करार दे दिया। जिन 14 एकंरों पर बैन लगा उनमें से ज्यादातर ने बैन वाले दिन भी अपने प्रोग्राम किये, और अपने प्रोग्राम में विपक्ष द्वारा लगाए गये बैन को गलत बताया लेकिन उनमें से किसी एक ने भी यह बताने कि हिम्मत नहीं कि बैन लगाए जाने के पीछे का कारण क्या है? जबकि दर्शकों को यह बात सबसे पहले बताई जानी चाहिए थी जबकि यह पेशगत ईमानदारी से जुड़ा मसला है।

1947 में जब भारत को आजादी मिली तब सबसे पहला सवाल यही था कि देश का नाम क्या होगा? इसके लिए संविधान सभा ने गहन विचार-विमर्श किया, इस पर कई अलग-अलग बहसें हुईं, कई नामों के प्रस्ताव आए, वोटिंग कराई गई। इस सब के बाद इसका नाम भारत और इंडिया माना गया, उसके बाद देश को नाम मिला ‘India that is Bharat’ इस बात को संविधान के पहले अनुच्छेद में ही स्पस्ट कर दिया गया कि जो इंडिया है वही भारत है। हमारे पूर्वज देश का नाम चुनने को लेकर इतनी मेहनत पहले ही कर चुके हैं, तब 75 साल से ज्यादा के बाद नाम बदलने का फैसला करना या फिर उसके बारे में सोचना कितना सही है।

बीते अगस्त की आखिरी शाम को खबर आई कि सरकार सितंबर महीने की 18-22 तारीख को संसद के विशेष सत्र का आयोजन करेगी, संसदीय कार्य मंत्री ने घोषणा की, लेकिन इस विशेष सत्र का एजेंडा क्या है वह नहीं बताया। विशेष सत्र के आयोजन की खबर के बाद से मीडिया से लेकर राजनीति के हर हल्के में कानाफूसी है कि सरकार ये कर सकती है, वो कर सकती है लेकिन पुख्ता तौर पर कोई भी जानकारी किसी के पास नहीं है कि सरकार क्या करने जा रही है।