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सुनिए एक प्यारी सी कहानी। ये कहानी आपके लिए लेकर आएं है प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन, जिसे सुना रहे है नन्हें-मुन्ने युग शाह। ये कहानी बच्चों को भी सुनाएं और देखिए कि उनकी कौनसी भावनाएं नज़र आती है। फ़ोन में नंबर 3 दबाकर अपने नन्हे-मुन्नों से जुड़ी कहानियां ज़रूर रिकॉर्ड करें, और मनाते रहें बचपन का ये त्यौहार...

चलिए सुनते हैं बड़ों के गुस्से का बच्चों पर असर। क्या आप जानते है कि गुस्से से नहीं बल्कि शांत रहकर ही हम बच्चे का व्यवहार सही रख सकते है। धैर्य से काम लेंगे तो हमारे साथ बच्चों का रिश्ता मीठा होता चला जाएगा। कार्यक्रम सुनिए और अपने नन्हे-मुन्नों के अनुभवों को रिकॉर्ड कीजिये, फ़ोन में नंबर 3 दबाकर।

चलिए सुनते हैं बच्चों के शारीरिक इशारों से जुड़ी भाषा। जानते हैं, माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों के लिए बच्चों के इशारों को समझना बहुत ज़रूरी है। कार्यक्रम सुनिए और बताइए,आप अपने छोटे बच्चे के इशारों से उसकी ज़रूरत को कैसे समझते हैं? अपने नन्हे-मुन्नों की बातें रिकॉर्ड कीजिये, फ़ोन में नंबर 3 दबाकर।

सुनिए एक प्यारी सी कहानी। इन कहानियों की मदद से आप अपने बच्चों की बोलने, सीखने और जानने की समझ बढ़ा सकते है। ये कहानी आपको कैसी लगी? क्या आपके बच्चे ने ये कहानी सुनी? इस कहानी से उसने कुछ सीखा? क्या आपके पास भी कोई नन्ही कहानी है? हमें बताइए, फ़ोन में नंबर 3 का बटन दबाकर।

दोस्तों, बचपन मनाओं, बढ़ते जाओ और मोबाइल वाणी लेकर आ रहे है आपके बच्चों के लिए हंसती, गुदगुदाती, नन्ही कहानियां। इन कहानियों की मदद से माता-पिता, दादा-दादी, भैया-दीदी और परिवार के सभी लोग अपने नन्हे- मुन्नों की बोलने-सीखने और जानने की क्षमता बढ़ा सकते है। सुनना न भूलिये, नन्ही कहानियां, हर गुरुवार शाम 7 बजे मोबाइल वाणी पर। और हाँ, आप भी बच्चों को सुना सकते है कोई नन्ही कहानी, फ़ोन में नंबर 3 का बटन दबाकर।

दोस्तों किसी शायर ने क्या खूब कहा है? न रोने की वजह थी, न था हंसने का बहाना. खेल खेल में कितना कुछ सीखा, कितना प्यारा था वो बचपन का ज़माना. काश, लौट आए फिर से वो कल सुकून भरा बचपन मनाएं हर पल. सच में कितने मज़ेदार थे ना वह बचपन के दिन? चलिए एक बार फिर से उन्हीं दिनों को जीने की कोशिश करते हैं अपने बच्चों के संग उनके बचपन को एक त्यौहार की तरह मनाते हुए हंसते हुए, खेलते हुए, शोर मचाते बन जाते हैं उनके दोस्त और जानने की कोशिश करते हैं इस बड़ी सी दुनिया को उनकी नन्ही आंखों से और बचपन के उन प्यारे जनों को याद करने में आपका साथ देंगे बचपन बनाओ और मोबाइल वाणी की टीम .घर और परिवार ही बच्चों का पहला स्कूल है और माता पिता दादा दादी और अन्य सदस्य होते हैं उनके दोस्त और टीचर हो. साथ में ये भी कि बच्चों के दिमाग का पचासी प्रतिशत से अधिक विकास छह वर्ष की आयु तक हो जाता है. तो अगर ये कीमती साथ हमने गवा दिए. तो उनके भविष्य को उज्जवल बनाने का मौका हम खो देंगे. अब यह सब कैसे सही रखें? इसके लिए आपको सुनने होंगे हमारे आने वाले एपिसोड तब तक आप हमें बता सकते हैं कि किस तरह के देखभाल से बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास सही रह सकता है. इससे जुड़ा अगर आपका कोई सवाल है या कोई जानकारी देना चाहते हैं तो रिकॉर्ड करने के लिए फोन में अभी दबाएं नंबर 3 . सुनते रहिए कार्यक्रम बचपन मनाओ, बढ़ते जाओ.

अब मिलकर मनाएंगे बचपन और खिल-खिलाएंगे बच्चों संग। क्योंकि बच्चों का बचपन है अनमोल और उसे संवारने में परिवार के हर प्राणी का है रोल। पर क्या है वो रोल? जानने के लिए सुनिए, बच्चों की शिक्षा और विकास से जुड़ा नया प्रोग्राम, 'बचपन मनाओ-बढ़ते जाओ'। ये प्रोग्राम शुरू हो रहा है 26 अक्टूबर, गुरुवार से, शाम 7 बजे मोबाइल वाणी पर। तो चलिए, बचपन को भी एक त्यौहार की तरह मनाएं, हंसी-खुशी से बच्चों की परवरिश पर ध्यान लगाएं। अपने बच्चों के उज्जवल और मजबूत भविष्य के लिए सुनिए, कार्यक्रम 'बचपन मनाओ-बढ़ते जाओ'।