महात्मा बुद्ध, आदिगुरु शंकराचार्य, गुरु रामानंद और स्वामी विवेकानंद आदि ने जहां दुनिया में शांति, त्याग और अध्यात्म का परचम लहराया वहीं पिछले कुछ दशकों से उभरने वाले किस्म-किस्म के बाबाओं ने राष्ट्र के मुख पर कालिख पोतने का काम किया है। अपनी अनुयायी स्त्रियों के शारीरिक शोषणए हत्या.अपहरण से लेकर अन्य जघन्य अपराध करने वाले बाबाओं का प्रभाव इस कदर बढ़ता जा रहा है कि आज जनता को तो छोड़िये, राजनेता, अभिनेताए अधिकारी, और बुद्धिजीवी वर्ग भी इनसे घबराने लगा है। आखिर इन बाबाओं के महाजाल का समाजशास्त्र क्या है? इनके पीछे जनता के भागने का अर्थशास्त्र और मनोविज्ञान क्या है?एक सवाल यह भी कि आखिर ढोंगी बाबाओं से छुटकारा पाने के क्या उपाय हैं?