सुनिए जेंडर हिंसा के खिलाफ चलने वाले इस कार्यक्रम, 'बदलाव का आगाज़', में आज सुनिए पतोत्री वैद्य जी को, जिनका कहना है युवाओं की सोच में एक नई उम्मीद और दृष्टिकोण है जो समाज में जेंडर के खिलाफ होने वाली हिंसा को रोकने के लिए सक्रिय रूप से उतर रहा है। युवा समझते हैं कि जेंडर परिवर्तन का मतलब सिर्फ नारा नहीं है, बल्कि सोच और आदतों में भी बदलाव लाना है।अब आप हमें बताएं कि जेंडर आधारित हिंसा के खिलाफ आप क्या सोच रहे हैं और इसे खत्म करने के लिए क्या कोशिश कर रहे हैं? अपने विचार और सुझाव हमें बताएं अपने फ़ोन में नंबर 3 दबाकर

यह कहानी एक लड़की की साहस और संघर्ष की है, जिसने अत्याचार को मात दिया और नये जीवन की धारा चलाई। मायके का साथ बना उसका सहारा, बेटे को बड़ा किया सच्चाई की पुकार से। उमा ने सिखाया, हिंसा से ना डरो, आगे बढ़ो, सपनों को हकीकत में बदलो। आपको लगता है कि उमा ने अपने जीवन में सही निर्णय लिया था, जब वह अपने परिवार के खिलाफ खड़ी हुई थी? उमा की कहानी आपको कैसे प्रेरित करती है और आपके विचारों में समाज में इस तरह की स्थितियों पर सहायता और बदलाव कैसे लाया जा सकता है?

हमारे पुरुष प्रधान समाज में बच्चे और महिलाएं हिंसा का आसानी से शिकार हो जाते है। ऐसा ही हाल ट्रांसजेंडर यानी तीसरे जेंडर का भी है। ये वो लोग है जो खुद को ना पुरुष और ना ही महिला मानते हैं। इनके हक़ के लिए संघर्षरत है पिया कपूर, जो खुद भी एक किन्नर है। पिया का कहना है कि लोग उन्हें भी इंसान समझे। इसके लिए समाज की सोच और कानून में बदलाव बहुत ज़रूरी है।तीसरे जेंडर के लिए लोगों की सोच और भावनाएं कैसे सुधारी जा सकती है? क्या स्कूली शिक्षा के माध्यम से इस समुदाय के लोगों का जीवन बेहतर हो सकता है? अपने विचार और अनुभव हमें बताने के लिए फोन में अभी दबाएं नम्बर 3

सुनिए जेंडर हिंसा के खिलाफ चल रहे हमारे इस कार्यक्रम बदलाव का आगाज़ में आज यशस्विनी जी ने उन कानूनों के बारे में बताया जो इस मामले में पीड़ित की मदद कर सकते हैं और बताए उन संगठनों की नाम जो जेंडर-आधारित हिंसा के मामलों में लोगों को कानूनी प्रक्रिया में सहायता करते हैं। आपके विचार में, समाज में जेंडर हिंसा के खिलाफ बदलाव के लिए सबसे बड़ी जरूरत क्या है? जेंडर हिंसा के खिलाफ लड़ाई में कानून कितना महत्वपूर्ण है? क्या आपने कभी जेंडर हिंसा के खिलाफ किसी की मदद की है?

जेंडर हिंसा के खिलाफ चल रहे हमारे इस कार्यक्रम बदलाव का आगाज़ में आज सुनिए यशस्विनी जी को, जो जेंडर आधारित हिंसा पर कानूनी मामलों की जानकार हैं। यशस्विनी जी का कहना है कि अगर हिंसा है तो उसे करने वालों के खिलाफ कार्रवाई का कड़ा प्रावधान भी है. बस जरूरत है तो... कदम बढ़ाने की!

ऐसे समाज में जहां मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा अक्सर रूढ़िवादिता के आसपास होती है, अब चुप्पी तोड़ने और एक आवश्यक लेकिन नजरअंदाज किए गए मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करने का समय है - पुरुषों का मानसिक स्वास्थ्य। जबकि मानसिक कल्याण के बारे में बातचीत ने गति पकड़ ली है, मदद मांगने या अपनी कमजोरी व्यक्त करने वाले पुरुषों के बीच लगातार कलंक बना हुआ है। हाल के अध्ययनों से संकेत मिलता है कि पुरुषों में अपने मानसिक स्वास्थ्य संघर्षों को स्वीकार करने की संभावना कम होती है, जिससे महिलाओं की तुलना में निदान और उपचार में महत्वपूर्ण असमानता होती है। इससे उनके समग्र कल्याण पर दीर्घकालिक प्रभाव के बारे में चिंता पैदा होती है। उन पारंपरिक अपेक्षाओं से मुक्त होकर, जो पुरुषों को आदेश देती हैं कि उन्हें कठोर और अडिग होना चाहिए, मानसिक स्वास्थ्य के बारे में खुली बातचीत को प्रोत्साहित करना महत्वपूर्ण है। पुरुषों को अनोखी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो तनाव, चिंता और अवसाद में योगदान कर सकती हैं, और ऐसे माहौल को बढ़ावा देना जहां वे अपने अनुभवों को साझा करने के लिए सुरक्षित महसूस करें, सर्वोपरि है। यह धारणा कि मदद मांगना कमज़ोरी की निशानी है, ख़त्म की जानी चाहिए। लचीलेपन और पुनर्प्राप्ति की व्यक्तिगत कहानियों को उजागर करके, हम दूसरों को आगे बढ़ने और उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, विशेष रूप से पुरुषों की आवश्यकताओं के अनुरूप सुलभ मानसिक स्वास्थ्य संसाधन उपलब्ध कराने से काफी अंतर आ सकता है। कलंक को चुनौती देने में सामुदायिक सहभागिता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। स्थानीय पहल, सहायता समूह और जागरूकता अभियान ऐसी जगहें बना सकते हैं जहां पुरुष समझे और समर्थित महसूस करें। अब मर्दानगी को फिर से परिभाषित करने, भावनात्मक बुद्धिमत्ता और कल्याण को आवश्यक घटकों के रूप में महत्व देने का समय आ गया है। एक स्वस्थ समाज की हमारी खोज में, आइए पहचानें कि पुरुष, किसी भी अन्य व्यक्ति की तरह, अपनी मानसिक स्वास्थ्य यात्रा को आगे बढ़ाने के लिए समझ, सहानुभूति और संसाधनों के पात्र हैं। पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य को खुले तौर पर और दयालुता से संबोधित करके, हम सभी के लिए अधिक लचीला और दयालु समुदाय बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हैं। डॉ सन्दीप गोहे क्लीनिकल साइक्लोजिस्ट

लड़कियों और महिलाओं के ख़िलाफ़ हो रही हिंसा रोकने के लिए शुरू हुए इस प्रोग्राम में आपका स्वागत है। किसी भी तरह की हिंसा रोकने के लिए समाज में रहने वालों के सोच-विचार बदलना बहुत ज़रूरी है।आज इस बारे में हम बात करेंगे पुरुषों के योगदान को लेकर और जानेंगे कि पुरुष किस तरह महिला कल्याण और सशक्तिकरण को बढ़ावा दे सकते है।पुरुषों की भागीदारी से जेंडर के नाम पर होने वाली हिंसा को कैसे ख़त्म किया जा सकता है। अपने विचार ज़रूर रिकॉर्ड करें, फोन में नंबर 3 दबाकर।

जेंडर हिंसा के खिलाफ चलने वाले इस कार्यक्रम, 'बदलाव का आगाज़', में आज सुनिए प्रियंका जी को, जिनका कहना है कि जब तक एक ट्रांसजेंडर या कहें ख़ुद को महिला और पुरुष के दायरे में ना रखने वाले हर इंसान को इंसान नहीं समझा जाएगा, उनके ख़िलाफ़ समाज में फैली हिंसा और नफ़रत कम नहीं होगी

जेंडर हिंसा के खिलाफ 16 दिनों तक चलने वाले इस कार्यक्रम, 'बदलाव का आगाज़', में आज सुनिए लोक लाज के बंधन में बंधी यह महिला जो दहेज के लोभियों के हाथों घरेलू हिंसा की सज़ा झेल रही थी, और आखिर में इसके खिलाफ उठाया उन्होंने एक कदम।

कार्यक्रम बदलाव का आगाज़ जेंडर के नाम पर होने वाली हिंसा के खिलाफ 16 दिनों तक चलने वाले इस कार्यक्रम में आपका स्वागत है।लड़कियों के मन में शादी को ले कर उलझन और उत्साह दोनों तरह की भावनायें होती हैं। कई तरह के सवाल भी होते हैं। आईये सुनते हैं इस कड़ी में रेखा की आपबीती।