बूझ सको तो बूझो-जान सको तो जानो!! पूरे जिले में हाथ लहराने और कमल खिलाने का माहौल बनाने के लिए साम-दाम-अर्थ और भेद की नीति अपनाई जा रही है। दीपावली भी चुनावी रंग में ही मनने वाली है, इसलिए यह कहना भी उचित है कि दीवाली के बहाने कई दीवारों के रंग बदल जाएंगे तो कई इंसानों के रंग उतर जाएंगे! प्रत्याशी पार्टी का हो या निर्दलीय उसके सामने सबसे बड़ा प्रश्र अपनी-अपनी विधानसभा में जागरुक हो गए वोटर्स को साधने का है। प्रमुख पार्टियों में चुनाव जीतने के लिए चाणक्यों की फौज भी ज्ञान की गंगा बहाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। कुछ क्षेत्रों में तो अचानक पांच वर्ष तक सोये योध्दा जाग गए है और पूरा मोर्चा ऐसे संभाल लिया है जैसे चुनावी वैतरणी को बस वही पार लगा सकते है। चुनाव चौपाल चिकल्लस में आज जानते है भैंसदेही विधानसभा क्षेत्र के नेताजी के बारे में.. इन नेताजी ने प्रत्याशी की घोषणा के तत्काल बाद एक्शन मोड में आकर मैदानी कार्यकर्ता से लेकर पार्टी के विधानसभा क्षेत्र के प्रत्याशी को भी चौका दिया है। नेताजी के एक्शन मोड में आने के साथ ही चुनावी अर्थव्यवस्था संभालने का फैसला उनकी मंशा जाहिर करने के लिए काफी है। चौपाल पर इन नेताजी को लेकर चिकल्लस भी जारी है। पार्टी के आस्थावान कार्यकर्ताओं के बीच चिकल्लस जारी है कि पांच साल तक जो सो रहे थे, डेढ़ साल से बीमार थे वह अचानक जाग गए और पूर्णत:स्वस्थ भी हो गए है। भले ही नेताजी यह दंभ भर रहे है कि टाईगर इज बैक, लेकिन पूरे क्षेत्र में इसे चुनाव और पार्टी फंड को ठिकाने लगाने का प्रपंच करार दिया जा रहा है। अचानक सक्रिय हुए वरिष्ठ नेताजी का रवैया फिलहाल विधानसभा सीट जिताने के लिए पसीना बहाने वाले प्रत्याशी के करीबियों से लेकर पांच वर्षों से पार्टी के लिए काम कर रहे कार्यकर्ताओं को भी नागवार गुजर रहा है। इसके पीछे नेताजी का पुराना रिकार्ड और उनके लिए क्षेत्र में चल रही चर्चा बड़ा आधार है। चिकल्लस तो यह भी है कि नेताजी को अर्थ व्यवस्था से खेलने उसे साधने और नफा- नुकसान का अच्छा खासा ज्ञान है। अंधा बाटे रेवड़ी फिर-फिर अपने को दे की कहावत कहीं चरितार्थ न हो जाए इसलिए यहां असंतोष चौपाल तक पहुंच गया है। चिकल्लस का सार कुछ ऐसा है कि चुनाव लडऩे के लिए पार्टी ने जिस योद्धा को चुना है उसके लिए भी यह नेताजी न निगल सकते न उगल सकते वाली हड्डी बन गए है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो आदिवासी बाहुल्य विधानसभा में पार्टी की लुटिया डूब भी सकती है। ऐसे में विधानसभा प्रभारी और पांचों विधानसभा सीट जीतने के लिए जिन्हें जिम्मेदारी दी गई है उनकी नजर की चूक बड़ी मुसीबत बन सकती है। बहरहाल चुनाव-चौपाल-चिकल्लस की मानों तो बूझ सको तो बूझो..जान सकों तो जानो...!!