महिलाओं का राजनीति में आखिर क्या स्थान है

राज नैतिक अंधविश्वास

आजकल के नेताओं द्वारा जनता को लुभावने के लिए एक से एक वादे किए जा रहे

लगातार सरकार जनता को कोई ना कोई लालच देकर वोट प्रतिशत बढ़ाने में लगी है

भारत में चुनावों के दूरगामी परिणाम होते हैं, जिससे न केवल राजनीतिक परिदृश्य बल्कि शेयर बाजार और अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होती हैं दलाल स्ट्रीट से लेकर आम मजदूर तक, हर कोई चुनाव के दौरान बेचैनी का अनुभव करता है लेकिन एक सत्तारूढ़ दल का भारत के बाज़ार के भविष्य पर कितना प्रभाव है राजनीतिक परिवर्तन सरकारी नीतियों, आर्थिक प्राथमिकताओं और विनियमों में बदलाव ला सकते हैं, जो बाद में विभिन्न क्षेत्रों और कंपनियों को प्रभावित कर सकते हैं।

पिछले कुछ सालों से देश में एक नया शिगूफा छिड़ा हुआ है, एक देश एक चुनाव का, गाहे-बगाहे इसको लेकर चर्चा उठती रहती है। बीते महीने संसद के विशेष सत्र में भी इसको लेकर चर्चा उठी थी। एक देश एक चुनाव के कराने के पीछे सरकार का तर्क है कि इससे देश के संसाधनों की बचत होगी।

लखीमपुर खीरी में सपा के दिग्गज नेता और चार बार संसद रहे रवि प्रकाश वर्मा ने पार्टी से दिया इस्तिफा|

गोला में भी जोश का मामला रविवर को नगर पालिका अध्यक्ष भाजपा जिला उपाध्याय विजय रिंकू शुक्ला भाजपा नेता धर्मेंद्र मोंटी ने नेतृत्व में पार्टी कार्यकर्ता सदर चौराहे पर पाहुंचे और मनए ख़ुशी|

इन दिनों समाचार माध्यमों और खासकर टीवी चैनलों में किसी विषय पर अपनी बात रख रहे पक्ष और विपक्ष के नेताओं के रवैये से यही स्पष्ट होता है कि वर्तमान राजनीति में चुनाव परिणामों से महत्वपूर्ण कुछ और है ही नहीं। अधिकांश चैनलों पर बहस विमर्श के नाम पर स्तरहीनता, अज्ञानता, राजनीतिक नासमझी और हर हाल में दलगत प्रतिबद्धता के भाव ही दिखाई पड़ते हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्थितियों की जानकारी और भारत के संबंध में उनकी महत्ता जैसे विषय आज के विमर्श में मुश्किल से ही कोई जगह बना पाते हैं। आगामी चुनावों और उनके परिणामों पर चर्चाएं तो थिंक टैंक, सेमिनार और प्रायोजित भाषणों में भी बढ़ती ही जा रहीं हैं। अनेक बार जो कुछ गांव-कस्बे की चौपाल पर चर्चित होता है वह बड़े-बड़े विद्वानों की चर्चा और विश्लेषण से अधिक सारगर्भित हो जाता है।

योगी आदित्यनाथ और अमित शाह की रैलियां ने चुनाव का तो मुंह ही मोड़ दिया और बंपर जीत हासिल की तभी तो कमल ने तो कमाल कर दिया