कंपोजिट विद्यालय करेरु प्रथम में तीन दिवसीय स्काउट गाइड प्रशिक्षण शिविर प्रथम तथा द्वितीय सोपान का स्काउट लीडर अनूप प्रियदर्शी व गाइड लीडर सुमनचंद्रा की देख रेख में चला। जिसमें विद्यालय के कक्षा 6 व 7 के बालक - बालिकाओं ने उत्साह के साथ प्रतिभाग किया।प्रशिक्षण में सभी को स्काउट गाइड नियम,प्रतिज्ञा के साथ प्राथमिक चिकित्सा ,आपदा प्रबंधन, विभिन्न गांठों का उपयोग , टेंट निर्माण , पिरामिंड निर्माण आदि सिखाया गया।तथा सभी को अनुशासित जीवन जीने के लिए प्रेरित किया गया।शिविर के समापन समारोह में जिला स्काउट लीडर अनूप मल्होत्रा ने बच्चो का उत्साह वर्धन किया।

आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में उद्यान एवं वानिकी महाविद्यालय की ओर से फलों की फसलों में पादप ऊतक संवर्धन एवं आण्विक मार्कर तकनीकें विषय पर चल रही तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का समापन हो गया। फल विज्ञान विभाग की ओर से आयोजित कार्यशाला में देशभर से दर्जनभर वैज्ञानिको ने ऊतक संवर्धन पर विस्तार से जानकारी दी। वैज्ञानिकों ने उतक संवर्धन तकनीक के विभिन्न तरीकों को बताया साथ ही साथ इसके महत्व पर भी विस्तार से जानकारी दी। फसल सुधार के लिए ऊतक संवर्धन को सबसे कुशल तकनीक बताया। इस मौके पर कुलपति ने कार्यशाला में प्रतिभाग करने पर एमएससी अंतिम वर्ष की छात्रा सोनम यादव सहित आधा दर्जन छात्र-छात्राओं को प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया। संयोजन डा. कुलदीप पांडेय व डा. जगवीर सिंह ने किया।

डाॅ राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा दीपोत्सव की सफलता के लिए शनिवार को स्वामी विवेकानंद सभागार में घाट समन्वयकों, घाट प्रभारी और स्वयंसेवकों की प्रशिक्षण कार्यशाला हुई।

कार्यशाला के मुख्य संरक्षक कुलपति डा. बिजेंद्र सिंह ने कहा कि फसल सुधार के लिए ऊतक संवर्धन को सबसे कुशल तकनीक माना जाता है। बड़े पैमाने पर पौधों के गुणन के लिए पादप ऊतक संवर्धन तकनीक का व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि पादप ऊतक संवर्धन का उपयोग किसी पौधे के आनुवांशिक संशोधन या बस उसकी उपज बढ़ाने के लिए किया जा सकता है। अधिष्ठाता डा. संजय पाठक ने बताया कि पादप ऊतक संवर्धन तकनीकें पादप प्रसार, रोग उन्मूलन, पादप सुधार और द्वीतीयक म्टाबोलाइट्स के उत्पादन के क्षेत्र में प्रमुख औद्योगिक महत्व बन गई हैं। उन्होंने बताया कि ऊतक के छोटे टुकड़े का उयोग एक सतत प्रक्रिया में सैकड़ों और हजरों पौधों का उत्पादन करने के लिए किया जा सकता है। कार्यक्रम का आयोजन नाहेप के वित्तीय सहयोग से किया गया। कार्यशाला का संयोजन डा. कुलदीप पांडेय व डा. जगवीर सिंह ने किया।