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नमस्कार आदाब श्रोताओं, मोबाइल वाणी आपके लिए लेकर आया है रोजगार समाचार। यह नौकरी उन लोगों के लिए है जो इंडियन एयर फोर्स रैली भर्ती, द्वारा निकाली गई Airmen (Group Y) पदों पर Rs.26,900/- प्रतिमाह रहेगा, पर कार्य करने के लिए इच्छुक है । कुल 100 पदों के लिए वैसे उम्मीदवार आवेदन कर सकते है जिन्होंने भौतिकी , रसायन विज्ञान, जीवविज्ञान और अंग्रेजी के साथ 12वीं / इंटरमीडिएट परीक्षा में कम से कम 50% अंकों के साथ पास किया हो। आवेदन करने के लिए 26-12-2002 और 26-12-2006 के बीच जन्मे उम्मीदवार ही पात्र होंगे।

सरकार और जनता का आपस में सहयोग का संबंध होता है, सरकार हमें सुविधा देती है और हम, बदले में टैक्स। यह संबंध अब टूट रहे हैं, कारण कि सरकार ने हमें दी वाली सुविधाओं को ‘रेवड़ी’ कहना शुरु कर दिया है। सरकार का कहना है कि सुविधाएं चाहिए तो पैसा दीजिए, लेकिन अगर पैसा देकर ही सब कुछ ही मिलेगा तो फिर सरकार किस लिए है?

"गांव आजीविका और हम" कार्यक्रम के तहत हमारे कृषि विशेषज्ञ श्री अशोक झा केंचुआ खाद बनाने के बारे में जानकारी दे रहें हैं। अधिक जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें.

मेरी भी आवाज़ सुनो कार्यक्रम के अंतर्गत इस कड़ी में महिलाओं के लिए संपत्ति और भूमि पर अधिकार के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई।महिलाओं के लिए संपत्ति और भूमि पर अधिकार महिलाओं के अधिकार पर चर्चा की गयी है । अधिक जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें।

जलवायु की पुकार [श्रोताओं की सरगम] कार्यक्रम के अंतर्गत हम जानेंगे अलग अलग लोगों के योगदान के बारे में की कैसे पर्यावरण के समस्याओं का समाधान निकाला जा सके।

सरकार कानून की किताब में बदलाव कर रही है, इसके लिए देश की संसद में बिल पेश कर दिया गया है। इसको बदलने का कारण अंग्रेजों द्वारा बनाया जाना है, लेकिन सब कुछ करने के बाद इससे हमारे-आपके जीवन में क्या बदलाव आएगा यह सवाल अभी से उठना शुरू हो गया है?

लाली मेरे लाल की जित देखूं तित लाल। लाली देखन मै गई मै भी हो गयी लाल। दिल्ली में बैठ कर INDIA is shinhing को अंग्रेजी में कहने से जनता और ज़ोर ज़ोर से नारा लगाने लगती है। शायद इसी टमाटर की वजह से हम विश्व की 5 वीं या तीसरी अर्थव्यवस्था भी बन जाए। कौन जानता है ? वैसे भी आजकल INDIA कहने से मामला कुछ गड़बड़ाता ही जा रहा है। अब इंडिया कहे या भारत , ये भी सवाल नया बन कर उभर रहा है। लेकिन इंडिया को छोड़ जो किसान हमारे भारत में रहते है , उन्हें तो टमाटर की लाली से कुछ खास फ़र्क़ नहीं पड़ रहा है। झारखण्ड राज्य की राजधानी रांची से तक़रीबन 100 किलोमीटर दूर बड़कागांव में हर रोज़ सुबह सुबह सब्ज़ी की मंडी लगती है। उस मंडी में पिछले 15 सालों से सब्ज़ी बेच रहे एक सब्ज़ी वाले ने बताया कि पिछले 15 सालों में उन्होंने टमाटर को कभी भी इतना महंगा नहीं देखा। पिछले 1 महीने से खुद उन्होंने टमाटर को चखा भी नहीं है। एक किसान बलराम महतो ने बताया कि वे तो 50 रु किलो के भाव से टमाटर बेच दे रहे है। बाकि सुनने में आ रहा है कि यहाँ से मात्र 30 किलोमीटर दूर हज़ारीबाग शहर में 250 के भाव से टमाटर बिक रहा है। पिछले दिनों किसान आंदोलन में हमारी सरकारी जनता ट्रैक्ट्रर चलाते और जींस पहले लोगो को किसान मानने को तैयार ही नहीं थी. और वही सरकारी जनता आज किसानो को टमाटर के बहाने जींस पहनाने में लगी है। बात साफ़ है कि कम्पनियों की सरकारों के प्रवक्ता.. देश को टमाटर कम्पनी बनाने के चक्कर में लगी हुई है। और हमें और आपको टमाटर के बहाने टमाटर ही बने रहना देना चाहती है। ताकि हम सोते जागते , उठते-बैठते टमाटर -टमाटर ही करते रहे. तो अब सवाल ये है कि टमाटर के भाव बढ़ जाते हैं तो किसान को इसका फायदा क्यों नहीं मिलता? क्योंकि सौ रुपये किलो के टमाटर में अस्सी रुपये बीच वाले खा लेते हैं। इस मुल्क में किसानों के नाम पर बहुत से लोगों को बहुत कुछ मिल जाता है। नोट वाले नोट ले जाते हैं, वोट वाले वोट ले जाते हैं, राज करने वाले राज करने लगते है और मुर्ख बनाने वालों को नए नए तरीके मिल जाते है। बात बस इतनी सी है कि अगर किसानो को फायदा मिलना शुरू हो जाएगा तो बीच के कई लोगों को घाटा हो जाएगा। तो साथियों, आप मुझे बताइए कि आपके यहाँ मॅहगाई के क्या हालात है ? इस महँगाई में गुज़ारा कैसे हो रहा है ? और आपको राजीव की डायरी कैसी लगी ? किन-किन मुद्दों पर आपने वाले वक़्त में बात करना चाहते है ? अपनी बात बताने के लिए अभी दबाएँ अपने फ़ोन में नंबर 3 का बटन और बताएं अपने विचार। नमस्कार