कार्यशाला के मुख्य संरक्षक कुलपति डा. बिजेंद्र सिंह ने कहा कि फसल सुधार के लिए ऊतक संवर्धन को सबसे कुशल तकनीक माना जाता है। बड़े पैमाने पर पौधों के गुणन के लिए पादप ऊतक संवर्धन तकनीक का व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि पादप ऊतक संवर्धन का उपयोग किसी पौधे के आनुवांशिक संशोधन या बस उसकी उपज बढ़ाने के लिए किया जा सकता है। अधिष्ठाता डा. संजय पाठक ने बताया कि पादप ऊतक संवर्धन तकनीकें पादप प्रसार, रोग उन्मूलन, पादप सुधार और द्वीतीयक म्टाबोलाइट्स के उत्पादन के क्षेत्र में प्रमुख औद्योगिक महत्व बन गई हैं। उन्होंने बताया कि ऊतक के छोटे टुकड़े का उयोग एक सतत प्रक्रिया में सैकड़ों और हजरों पौधों का उत्पादन करने के लिए किया जा सकता है। कार्यक्रम का आयोजन नाहेप के वित्तीय सहयोग से किया गया। कार्यशाला का संयोजन डा. कुलदीप पांडेय व डा. जगवीर सिंह ने किया।