साथियों, हमें बताएं कि क्या आपके क्षेत्र के सरकारी जिला अस्पतालों, उपस्वास्थ्य केन्द्रों, स्वास्थ्य केन्द्रों, आंगनबाडी में पानी की कमी है? क्या वहां प्रशासन ने पानी की सप्लाई व्यवस्था दुरूस्त नहीं की है? अगर अस्पताल में पानी नहीं मिल रहा है तो मरीज कैसे इलाज करवा रहे हैं? क्या पानी की कमी के कारण बीमार होते हुए भी लोग इलाज करवाने अस्पताल नहीं जा रहे? या फिर आपको अपने साथ घर से पानी लेकर अस्पताल जाना पड़ रहा है? अपनी बात अभी रिकॉर्ड करें, फोन में नम्बर 3 दबाकर.

सरायगढ़ भपटियाही प्रखंड के झिल्ला गांव स्थित आंगनबाड़ी के बच्चे पिछले 15 वर्ष से फूस की झोपड़ी में पढ़ने को विवश हैं। सुपौल जिले के सरायगढ़ भपटियाही प्रखंड क्षेत्र में आंगनबाड़ी के 145 केंद्र संचालित है जिसमें से कम ही के पास अपना भवन है। जिन आंगनबाड़ी केदो को अपना भवन नहीं है उसमें से अधिकांश का संचालन कहीं सेविका के आंगन में तो कहीं सहायिका के आंगन में हो रहा है। झोपड़ी में चलते आंगनबाड़ी को लेकर अब गांव के लोगों में आक्रोश बढ़ने लगा है।

जिले में संचालित आंगनबाड़ी केंद्रों का भवन के बिना हाल बेहाल है। 25 फीसद केंद्रों को भी अब तक अपना भवन नसीब नहीं हो पाया है। इसका मुख्य कारण भवन के लिए जमीन उपलब्ध नहीं होना है। परिणाम है कि ऐसे केंद्रों में नामांकित बच्चे झोपड़ी में बैठकर अक्षर ज्ञान प्राप्त करने और कुपोषण से लड़ने का जतन कर रहे हैं। बताते चलें कि जिले के सभी 11 परियोजनाओं में कुल 2427 आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हैं। इनमें से महज 584 केंद्रों का ही अपना भवन बन पाया है। शेष बचे केंद्र या तो किराए के मकान में संचालित हो रहे हैं या फिर किसी स्कूल में या फिर अन्य सरकारी भवन व सेविका के दलानों में संचालित हो रहे हैं। इसमें पर्याप्त जगह नहीं होने के कारण केंद्र पर आने वाले बच्चे व आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे आंगनबाड़ी केंद्र आज भी अपने भवन की बाट जोह रहे हैं। इसके जिम्मेदार लोग वर्षों से यह कहकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं कि जमीन ही नहीं उपलब्ध हो पा रही है। इधर ग्रामीण भी जमीन देने को तैयार नहीं हो रहे हैं। यहां सवाल उठता है कि आखिर कब तक नौनिहाल झोपड़ी में पढ़ने को विवश होंगे। यदि जमीन दान में नहीं मिल रही है तो फिर इसका विकल्प तो अब तक निकल जाना चाहिए। जब केंद्र के पास अपना भवन ही नहीं है तो इसमें कार्यरत सेविका-सहायिका विभागीय नियमों का कितना पालन करती होगी इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। ----------------------------------- शहरी क्षेत्र में भी हालत खराब ग्रामीण क्षेत्र की बात कौन कहे जिले के शहरी क्षेत्र में संचालित आंगनबाड़ी केंद्रों का हाल भी काफी दयनीय है। जिले में जो 2427 केंद्र संचालित हो रहे हैं उनमें से 181 केंद्र शहरी इलाके में अवस्थित है। इनमें से मात्र 14 केंद्रों को ही अपना भवन है। दिलचस्प बात है कि सदर प्रखंड के नगर परिषद क्षेत्र में अवस्थित जो 54 केंद्र संचालित हैं उनमें से एक भी केंद्र को अपना भवन नहीं है। त्रिवेणीगंज के शहरी क्षेत्र में संचालित 54 में से 8, पिपरा के 12 में से तीन, राघोपुर के 36 में से तीन केंद्र को ही अपना भवन है। ग्रामीण क्षेत्रों में अवस्थित 2446 केंद्रों में से 570 केंद्र को ही अपना भवन है। --

सरायगढ़ भपटियाही प्रखंड के विभिन्न आंगनबाड़ी केदो पर बुधवार को सुख राशन का वितरण किया गया। सुख राशन वितरण का डीपीओ आईसीडीएस सुपौल ने निरीक्षण किया। 5 वर्ष तक के बच्चे तथा गर्भवती और धात्री महिलाओं सहित किशोरियों में कुपोषण की समस्या खत्म करने हेतु सरकार के बाल विकास परियोजना द्वारा संचालित आंगनबाड़ी केदो पर प्रत्येक महसूस का राशन का वितरण किया जाता है। सुख राशन में लाभुकों को चावल दाल और सोयाबीन दिया जाता है। वह अनाज इसलिए दिया जाता है कि संबंधित लाभुकों को कुपोषण की समस्या नहीं बने।

सरकार द्वारा स्वास्थ्य से संबंधित संचालित योजनाओं को धरातल पर उतरने में लगे वैक्सीन कोरियर और आशा कार्यकर्ता अब अपनी मांगों को लेकर सड़क से सदन तक की लड़ाई शुरू करने जा रहे हैं। यह फैसला रविवार 28 जनवरी को विश्वनाथ इंटर महाविद्यालय भपटियाही के प्रांगण में वैक्सीन कोरियरों और आशा कार्यकर्ता संगठन के पदाधिकारी के जिला स्तरीय बैठक में लिया गया। संगठन के राज्य सचिव जिला सचिव तथा अन्य अधिकारियों के उपस्थिति में हुई बैठक में फैसला लिया गया कि सरकार आशा कार्यकर्ताओं को दो हजार रुपए मासिक देने का घोषणा तो की लेकिन उसको अभी तक कैबिनेट से मंजूरी नहीं मिली है। उसके अलावे सरकार को वैक्सीन कोरियर और आशा कार्यकर्ता को स्वास्थ्य कर्मी का दर्जा देना था जिस बारे में कोई पहल नहीं हो रही है। अब उसे लड़ाई को आगे बढ़ते हुए सदन तक ले जाया जाएगा।

बढ़ते ठंड के मद्देनजर जिलेभर का आंगनबाड़ी केंद्र हुआ बंद,जी हां आपको बता दे कि बढ़ते ठंड के मद्देनजर सुपौल जिले के सभी आंगनबड़ी केंद्र 14 जनवरी से 18 जनवरी तक बंद रहेंगे।जिससे संबंधित आदेश सुपौल डीएम कौशल कुमार ने जारी दिया है।जारी आदेश के बाद नौनिहाल बच्चो को ठंड में स्कूल आने से राहत मिला है।

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दोस्तों किसी शायर ने क्या खूब कहा है? न रोने की वजह थी, न था हंसने का बहाना. खेल खेल में कितना कुछ सीखा, कितना प्यारा था वो बचपन का ज़माना. काश, लौट आए फिर से वो कल सुकून भरा बचपन मनाएं हर पल. सच में कितने मज़ेदार थे ना वह बचपन के दिन? चलिए एक बार फिर से उन्हीं दिनों को जीने की कोशिश करते हैं अपने बच्चों के संग उनके बचपन को एक त्यौहार की तरह मनाते हुए हंसते हुए, खेलते हुए, शोर मचाते बन जाते हैं उनके दोस्त और जानने की कोशिश करते हैं इस बड़ी सी दुनिया को उनकी नन्ही आंखों से और बचपन के उन प्यारे जनों को याद करने में आपका साथ देंगे बचपन बनाओ और मोबाइल वाणी की टीम .घर और परिवार ही बच्चों का पहला स्कूल है और माता पिता दादा दादी और अन्य सदस्य होते हैं उनके दोस्त और टीचर हो. साथ में ये भी कि बच्चों के दिमाग का पचासी प्रतिशत से अधिक विकास छह वर्ष की आयु तक हो जाता है. तो अगर ये कीमती साथ हमने गवा दिए. तो उनके भविष्य को उज्जवल बनाने का मौका हम खो देंगे. अब यह सब कैसे सही रखें? इसके लिए आपको सुनने होंगे हमारे आने वाले एपिसोड तब तक आप हमें बता सकते हैं कि किस तरह के देखभाल से बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास सही रह सकता है. इससे जुड़ा अगर आपका कोई सवाल है या कोई जानकारी देना चाहते हैं तो रिकॉर्ड करने के लिए फोन में अभी दबाएं नंबर 3 . सुनते रहिए कार्यक्रम बचपन मनाओ, बढ़ते जाओ.