जिले में संचालित आंगनबाड़ी केंद्रों का भवन के बिना हाल बेहाल है। 25 फीसद केंद्रों को भी अब तक अपना भवन नसीब नहीं हो पाया है। इसका मुख्य कारण भवन के लिए जमीन उपलब्ध नहीं होना है। परिणाम है कि ऐसे केंद्रों में नामांकित बच्चे झोपड़ी में बैठकर अक्षर ज्ञान प्राप्त करने और कुपोषण से लड़ने का जतन कर रहे हैं। बताते चलें कि जिले के सभी 11 परियोजनाओं में कुल 2427 आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हैं। इनमें से महज 584 केंद्रों का ही अपना भवन बन पाया है। शेष बचे केंद्र या तो किराए के मकान में संचालित हो रहे हैं या फिर किसी स्कूल में या फिर अन्य सरकारी भवन व सेविका के दलानों में संचालित हो रहे हैं। इसमें पर्याप्त जगह नहीं होने के कारण केंद्र पर आने वाले बच्चे व आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे आंगनबाड़ी केंद्र आज भी अपने भवन की बाट जोह रहे हैं। इसके जिम्मेदार लोग वर्षों से यह कहकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं कि जमीन ही नहीं उपलब्ध हो पा रही है। इधर ग्रामीण भी जमीन देने को तैयार नहीं हो रहे हैं। यहां सवाल उठता है कि आखिर कब तक नौनिहाल झोपड़ी में पढ़ने को विवश होंगे। यदि जमीन दान में नहीं मिल रही है तो फिर इसका विकल्प तो अब तक निकल जाना चाहिए। जब केंद्र के पास अपना भवन ही नहीं है तो इसमें कार्यरत सेविका-सहायिका विभागीय नियमों का कितना पालन करती होगी इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। ----------------------------------- शहरी क्षेत्र में भी हालत खराब ग्रामीण क्षेत्र की बात कौन कहे जिले के शहरी क्षेत्र में संचालित आंगनबाड़ी केंद्रों का हाल भी काफी दयनीय है। जिले में जो 2427 केंद्र संचालित हो रहे हैं उनमें से 181 केंद्र शहरी इलाके में अवस्थित है। इनमें से मात्र 14 केंद्रों को ही अपना भवन है। दिलचस्प बात है कि सदर प्रखंड के नगर परिषद क्षेत्र में अवस्थित जो 54 केंद्र संचालित हैं उनमें से एक भी केंद्र को अपना भवन नहीं है। त्रिवेणीगंज के शहरी क्षेत्र में संचालित 54 में से 8, पिपरा के 12 में से तीन, राघोपुर के 36 में से तीन केंद्र को ही अपना भवन है। ग्रामीण क्षेत्रों में अवस्थित 2446 केंद्रों में से 570 केंद्र को ही अपना भवन है। --