"गांव आजीविका और हम" कार्यक्रम के तहत हमारे कृषि विशेषज्ञ प्याज की रोपाई से पूर्व मिट्टी तैयार करने के बारे में जानकारी दे रहे है । अधिक जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें.

सरकार के द्वारा कानून बदलाव एवं पार्टियों के द्वारा जाति धर्म के राजनीति पर सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्य करता मेघा पाटेकर के द्वारा जानकारी

भारतीय पुलिस व्यवस्था अंग्रेजों की देन है लेकिन उसके बाद बनी व्यवस्था और संस्थाएं, यहां की जरूरत के हिसाब से बनाई गईं। इन सभी का काम था कि अपराधों को रोकना और अपराधियों को पकड़ कानून के समक्ष पेश करना। इनको बनाने के पीछे के उद्देश्य अच्छा था, लेकिन हर बीतते दिन के साथ उजागर होते इनके कारनामे, अफसोस करने पर मजबूर करते हैं कि इनको बनाया ही क्यों गया, टेक्स देने वालों के पैसे की इस तरह बर्बादी क्यों? इन्हें काम अपने तो मालिकों के इशारे पर करना है, बजाए इसके जिसके लिए उन्हें बनाया गया है।

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"गांव आजीविका और हम" कार्यक्रम के तहत हमारे कृषि विशेषज्ञ श्री जीवदास साहू मटर की खेती के बारे में जानकारी दे रहे है । मटर की खेती के लिए अच्छे बीज,खाद सहित अन्य जानकारियों के लिए ऑडियो पर क्लिक करें...

"गांव आजीविका और हम" कार्यक्रम के तहत हमारे कृषि विशेषज्ञ आलू फसल लगाने से पूर्व तैयार कर ले खेत के बारे में जानकारी दे रहे है । अधिक जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें.

"गांव आजीविका और हम" कार्यक्रम के तहत हमारे कृषि विशेषज्ञ अरहर की फसल में उकटा रोग की करें निगरानी के बारे में जानकारी दे रहे है । अधिक जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें.

दोस्तों, अब आपके पास भी मौका है झुमरू का झोला उठाने का। अपने क्षेत्र के मज़ेदार किस्से, कहानियां और लोक गीत ढूंढिये और रिकॉर्ड कीजिए मोबाइल वाणी पर। सबसे ज़्यादा रोचक किस्से, कहानियां और लोक गीत रिकॉर्ड करने वाले को मिलेगा, मोबाइल वाणी और रिप्रेजेंट बिहार संस्था की ओर से एक आकर्षक इनाम। तो फिर देर किस बात की, बन जाइए झुमरू और निकल पड़िए मज़ेदार किस्से, कहानियों और लोक गीतों की तलाश में। और हाँ.. उन्हें रिकॉर्ड करने के लिए फोन में दबाएं नम्बर 3...

दोस्तों, आज झुमरू के झोले से निकला है एक कहानी। यह कहानी सुना रही है सिंगरौली से मोबाइल वाणी की श्रोता, निषाद ख़ानम। अगर आपके पास भी ऐसा ही कोई कहानी है, तो उसे मोबाइल वाणी पर रिकॉर्ड करें। इसके अलावा, आप रिकॉर्ड कर सकते है अपने क्षेत्र के रोचक किस्से और लोक गीत... फोन में नम्बर 3 दबाकर।

दोस्तों, बीते कुछ सालों में भारत के हर शहर में स्कूलों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि एडमिशन का फैसला लेना आसान नहीं होता है. हर कोई अपने स्कूल को बेस्ट दिखाने की होड़ में लगा हुआ है. इस वजह से किसी भी स्कूल में बच्चे का एडमिशन करवाने से पहले माँ-बाप को कई स्तरों पर गहरी खोज बिन करनी पड़ती है. लेकिन ये खोज बिन या पड़ताल करते है शहर में रहने वाले माँ बाप। गाँव आज भी हमारे नक़्शे से गायब है या फिर मनोज कुमार की फिल्मो के जरिए हम गाँव को गाँव की तरह खोजने की कोशिश में लगे हुए है। क्या आपने कभी वोट देने अपने नुमाईंदों से पूछा है कि आपके क्षेत्र के स्कूलों की स्थिति ऐसी क्यों है ? बच्चे जो आपके भविष्य है उनके भविष्य का क्या होगा ? या किसी भी पार्टी को वोट देने से पहले आपको अपने बच्चे के भविष्य को लेकर यह ख़्याल आता है ? बात साफ़ है कि कम्पनियों के सरकारों के प्रवक्ता आपको इस और सोचने ही नहीं देंगे। वो चाहते है कि आप उनका झंडा उठाये, टोपी पहले और भीड़ में शामिल होकर एक-दूसरे पर चिल्लाते रहे और वो अपने बच्चों को विदेशो में पढ़ाते रहे । याद रखिए जो सरकार या पार्टी आपका या आपके पारवार कहा भविष्य खराब कर रहा है वो देश का अच्छा कैसे कर सकता है , उनके केंद्र में आप नहीं हैं तो देश भी नहीं होगा ? खैर.. ये तो आपके निर्णय की बात है तब तक, आप हमें बताइए कि ***** आपके गाँव या क्षेत्र में सरकारी स्कूलों में पढ़ाई कैसी है ? ***** वहां के स्कुल कितने शिक्षक और शिक्षिका आते है ? ***** साथ ही आपके बच्चों को या अन्य बच्चों को आपके गाँव के स्कूलों में किस तरह की शिक्षा मिल रही है ?