पाठशाला शब्द ही हुआ गायब और अब तो स्कूलों व काँलेज में गुरू एवं शिष्य की रिश्ता भी लुप्त हो चुका है. बाजारों में बिकती शिक्षा अब गरीबों से हो चुकी बहुत दूर..... क्या होगा गरीब बच्चों का.