पिछले कुछ सालों से देश में एक नया शिगूफा छिड़ा हुआ है, एक देश एक चुनाव का, गाहे-बगाहे इसको लेकर चर्चा उठती रहती है। बीते महीने संसद के विशेष सत्र में भी इसको लेकर चर्चा उठी थी। एक देश एक चुनाव के कराने के पीछे सरकार का तर्क है कि इससे देश के संसाधनों की बचत होगी।

लोकतंत्र का उत्सव इन चुनावों ने राजनेताओं और जनता को बहुत से सबक दिये हैं। ऐसे सबक जो केवल चुनावी राजनीति में नहीं बल्कि जीवन के हर पहलू में हमें सीखना जरूरी सा है। ये सबक आज के आज़ाद भारत के समाज को समझने के लिए बेहद जरूरी हैं।

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चुनावी माहौल में हिंसा, बहुत पुरानी बात नहीं है, बिना हिंसा के शायद ही कोई चुनाव होता हो, बंगाल इस मामले में सबसे आगे है, जहां पंचायत से लेकर सांसद तक के चुनाव बिना हिंसा के पूरे नहीं होते, यहां राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ता अपने विरोधी दलों के कार्यकर्ताओं को मरने मारने पर उतारु रहते हैं।