अभी हाल में ही सांख्यिकी और कार्यक्रम मंत्रालय, भारत सरकार ने जुलाई महीने का नया आकंड़ा ज़ारी किया है। इस आंकड़े के अनुसार , सब्जियों और अन्य खाने का सामान महंगा होने से खुदरा मुद्रास्फीति जुलाई में 7.44 प्रतिशत पर पहुंच गई है , जो कि पिछले 15 महीनो में सबसे ज्यादा है। मतलब कि जुलाई महीने में पिछले डेढ़ साल की सबसे ज्यादा महँगाई थी। लेकिन क्या कभी आपने किसी नेता का बढ़ती महँगाई पर बयान सुना। पहले टमाटर महँगा था तो उसे छोड़ने के लिए बोला गया। अब कुछ दिन में आटा और दाल खाने के लिए भी मना किया जाएगा। उसके बाद हम लोग हवा पीकर न्यू इंडिया को बनाने में अपना योगदान देंगे। कौन जाने ...? बाकि लाल किले की प्राचीर से आपने देश के प्रधानमंत्री का भाषण सुन ही लिया होगा। सरकार ने तो पहले से ही कह दिया था कि जो सत्तर साल में नहीं हुआ, उसे ही कर के दिखाएंगे और एकदम नया इंडिया बनाएंगे। तो वो तो बन ही रहा है। एक दम से रिन जैसा सफ़ेद। बाकि आप बताईये दोस्तों, आपके क्षेत्र में महंगाई के क्या हालात है ? इस बढ़ती हुयी महँगाई ने आपके और आपके परिवार में खान पान को किस तरह से प्रभावित किया है ? आने वाले वक़्त में आप किन-किन मुद्दों पर बात करना चाहते है ? और आपको राजीव की डायरी कैसी लग रही है। अपनी बात बताने के लिए अभी दबाएँ अपने फ़ोन में नंबर 3 का बटन और बताएं अपने विचार।

राजनीति तय करती है कि समाज की दशा और दिशा क्या होगी, राजनीति यह भी तय करती है कि देश का भविष्य क्या होगा? इसे समाज का अगुआ माना जाता है। इसलिए राजनीति कभी हल्के उद्देश्यों के साथ नहीं की जाती, और यह देश के सबसे बड़े पद पर बैठे लोगों से जुड़ी हो तो उनसे और अतिरिक्त गंभीरता और सतर्कता की उम्मीद की जाती है। राजनीति और देश के भविष्य की गंभीरता को महान समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया बेहतर ढंग से समझाते हुए कहते हैं कि “जिंदा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करतीं।” लोहिया जब वे यह बात कह रहे थे उस समय देश में नेहरू जैसा महान व्यक्ति देश का नेतृत्व कर रहा था।

सरकार और जनता का आपस में सहयोग का संबंध होता है, सरकार हमें सुविधा देती है और हम, बदले में टैक्स। यह संबंध अब टूट रहे हैं, कारण कि सरकार ने हमें दी वाली सुविधाओं को ‘रेवड़ी’ कहना शुरु कर दिया है। सरकार का कहना है कि सुविधाएं चाहिए तो पैसा दीजिए, लेकिन अगर पैसा देकर ही सब कुछ ही मिलेगा तो फिर सरकार किस लिए है?

"गांव आजीविका और हम" कार्यक्रम के तहत हमारे कृषि विशेषज्ञ श्री अशोक झा केंचुआ खाद बनाने के बारे में जानकारी दे रहें हैं। अधिक जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें.

सरकार कानून की किताब में बदलाव कर रही है, इसके लिए देश की संसद में बिल पेश कर दिया गया है। इसको बदलने का कारण अंग्रेजों द्वारा बनाया जाना है, लेकिन सब कुछ करने के बाद इससे हमारे-आपके जीवन में क्या बदलाव आएगा यह सवाल अभी से उठना शुरू हो गया है?

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जलवायु की पुकार [श्रोताओं की सरगम] कार्यक्रम के अंतर्गत हम जानेंगे अलग अलग लोगों के योगदान के बारे में की कैसे पर्यावरण के समस्याओं का समाधान निकाला जा सके।

लाली मेरे लाल की जित देखूं तित लाल। लाली देखन मै गई मै भी हो गयी लाल। दिल्ली में बैठ कर INDIA is shinhing को अंग्रेजी में कहने से जनता और ज़ोर ज़ोर से नारा लगाने लगती है। शायद इसी टमाटर की वजह से हम विश्व की 5 वीं या तीसरी अर्थव्यवस्था भी बन जाए। कौन जानता है ? वैसे भी आजकल INDIA कहने से मामला कुछ गड़बड़ाता ही जा रहा है। अब इंडिया कहे या भारत , ये भी सवाल नया बन कर उभर रहा है। लेकिन इंडिया को छोड़ जो किसान हमारे भारत में रहते है , उन्हें तो टमाटर की लाली से कुछ खास फ़र्क़ नहीं पड़ रहा है। झारखण्ड राज्य की राजधानी रांची से तक़रीबन 100 किलोमीटर दूर बड़कागांव में हर रोज़ सुबह सुबह सब्ज़ी की मंडी लगती है। उस मंडी में पिछले 15 सालों से सब्ज़ी बेच रहे एक सब्ज़ी वाले ने बताया कि पिछले 15 सालों में उन्होंने टमाटर को कभी भी इतना महंगा नहीं देखा। पिछले 1 महीने से खुद उन्होंने टमाटर को चखा भी नहीं है। एक किसान बलराम महतो ने बताया कि वे तो 50 रु किलो के भाव से टमाटर बेच दे रहे है। बाकि सुनने में आ रहा है कि यहाँ से मात्र 30 किलोमीटर दूर हज़ारीबाग शहर में 250 के भाव से टमाटर बिक रहा है। पिछले दिनों किसान आंदोलन में हमारी सरकारी जनता ट्रैक्ट्रर चलाते और जींस पहले लोगो को किसान मानने को तैयार ही नहीं थी. और वही सरकारी जनता आज किसानो को टमाटर के बहाने जींस पहनाने में लगी है। बात साफ़ है कि कम्पनियों की सरकारों के प्रवक्ता.. देश को टमाटर कम्पनी बनाने के चक्कर में लगी हुई है। और हमें और आपको टमाटर के बहाने टमाटर ही बने रहना देना चाहती है। ताकि हम सोते जागते , उठते-बैठते टमाटर -टमाटर ही करते रहे. तो अब सवाल ये है कि टमाटर के भाव बढ़ जाते हैं तो किसान को इसका फायदा क्यों नहीं मिलता? क्योंकि सौ रुपये किलो के टमाटर में अस्सी रुपये बीच वाले खा लेते हैं। इस मुल्क में किसानों के नाम पर बहुत से लोगों को बहुत कुछ मिल जाता है। नोट वाले नोट ले जाते हैं, वोट वाले वोट ले जाते हैं, राज करने वाले राज करने लगते है और मुर्ख बनाने वालों को नए नए तरीके मिल जाते है। बात बस इतनी सी है कि अगर किसानो को फायदा मिलना शुरू हो जाएगा तो बीच के कई लोगों को घाटा हो जाएगा। तो साथियों, आप मुझे बताइए कि आपके यहाँ मॅहगाई के क्या हालात है ? इस महँगाई में गुज़ारा कैसे हो रहा है ? और आपको राजीव की डायरी कैसी लगी ? किन-किन मुद्दों पर आपने वाले वक़्त में बात करना चाहते है ? अपनी बात बताने के लिए अभी दबाएँ अपने फ़ोन में नंबर 3 का बटन और बताएं अपने विचार। नमस्कार

शोर... संसद से लेकर सड़क तक, गांव से लेकर शहर तक, इस शोर में गायब है उस जनता की आवाज जिसे अक्सर इमारतों में बैठने वाले भगवान कहते हैं? शोर चाहे जितना घना हो फ़र्क़ नहीं पड़ता , भीड़ कितनी ही घनी हो फ़र्क़ नहीं पड़ता, इस घने शोर और भीड़ के कोने से आरही हर एक आवाज जरूरी और अहम् होनी चाहिए। ऐसे ही किसी कोने से आती हर एक आवाज को उठाने के लिए मोबाइल वाणी ला रहा है एक नया कार्यक्रम ‘पक्ष-विपक्ष ’, 17 अगस्त से हर सोमवार और गुरुवार को हम लेकर आएंगे समाज के वो ज्वलंत मुद्दे जिन पर बात करना है बेहद ज़रूरी। चाहे आप मुद्दे के पक्ष में खड़े हों या विपक्ष में, मोबाइल वाणी के इस नए कार्यक्रम "पक्ष-विपक्ष" में अपनी बात ज़रूर रखे। तो इस समय आप के मुद्दे क्या है? अभी रिकॉर्ड करें नंबर ३ दबाकर या मोबाइल वाणी एप से ऐड का बटन दबाकर।

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